सबुज संतक
सबुज संतक हम लोगों को इस शहर में आए हुए दो साल हो चुके थे । इस साल गर्मियों के दिन इतने कष्टदायी थे , कि हम घर बदलने की सोच रहे थे । अंतत घर को घेरे बहुत सारे बड़े और घने पेड़ रहे , सभी की यही राय थी । पिछले वर्ष एक विशाल आम के पेड़ की छाया ने हमें गर्मी से बचाया था । चारों तरफ फैले हुए आम-पेड़ की शाखाएं-प्रशाखाएं हमारे किराए के घर की छत पर एक छतरी की तरह फैली हुई थी । छत पर चढ़कर बच्चे उसकी डाली पर बैठ जाते थे । बसंत ऋतु में अनेक चिड़ियाँ वहाँ आकर अपना घोंसला बनाती थी । गर्मी के दिनों में पेड़ पर आम लगते थे , अच्छे रसभरे मीठे आम । किराए घर के सामने फलक में घर के मालिक रहते है और पीछे वाले हिस्से में हमारा परिवार । सामने की खुली जगह में कुर्सी डालकर सभी बैठते थे । घर के मालिक और उनकी पत्नी रहती थीं और उनके बहुत सारे दोस्त उन्हें मिलने के लिए आया करते थे । प्राय सभी उस आम के पेड़ की छाया के नीचे बैठते थे और वहाँ पर बैठक जमती थी । गर्मी के दिनों में आसर का समय बढ़ता था । आम खाने के लिए बहुत दोस्त आते थे । ऐसा लगता , पेड़ के सारे आम केवल वे लोग ही खाते है , घर के सदस्यों क