दर्पण में पद्मिनी


दर्पण में पद्मिनी
 
सेंटर पाइंट के सामने के लॉन में मेरी पहली मुलाकात हुई थी सुलग्ना से , उम्र 22 या 23 रही होगी,गाढ़े नीले रंग की जीन्स पर हल्के बैगनी रंग का छोटा शर्ट पहने हुए और हाथ में सिगरेट । वह मुझे देख कर मुस्कुरा दी,  मैं भी वशीभूत होकर उसकी तरफ खींचता चला गया, जब तक मैंने अपनी  कुर्सी पकड़ी तब तक  सात बजकर  पैंतालीस मिनट हो चुके थे
क्लब में इस समय भीड़ जमने लगती है
मेरे कुछ भी बोलने से पहले वह चारों तरफ के वातावरण से उत्साहित होकर औपचारिकता दिखाते मैंने पूछा , “ ड्रिंक्स मगाऊँ ?”  
उसने कहा , “स्योर, आई आम सुलग्ना एंड यू ?”  
मैंने जवाब दिया , “ मैं  यहाँ सी. ड़ी. पी. ओ. बनकर  जॉइन किया हूँ पिछले हफ्ते
लगा जैसे वह घबरा गई और अब खूब सावधानी से बातें करनी लगी ।
वह लड़की बहुत सुन्दर, सुशिक्षित और अमीर परिवार की लग रही थी ।  मगर उसके बाद   वह मुझे मेरे बारे में बहुत सारे सवाल पूछने लगी और साढ़े आठ बजते-बजते न जाने  वह कहां अदृश्य हो गई प्रायः एक महीने तक वह कहीं और नजर नहीं आई ।
 एक दिन अचानक सुपर बाजार के अंदर सुलग्ना के साथ मुलाक़ात हो गई । इस बार वह अपनी माँ के साथ थी ।माँ  की   उम्र शायद बयालीस के अंदर होगी । सुन्दर और सुदर्शना  हल्के-पीले रंग की सीफोन साड़ी में वह एक अभिनेत्री जैसे  लग रही थी ।  बाद में पता चला कि वह बड़े-बड़े इवैंट में एंकरिंग करती थी दोनों माँ-बेटी की पसंद शायद प्रायः एक ब्राण्ड की परफ्यूम । इसलिए मैं उनकी  सुगंध को पहचान कर उनकी तरफ़ चुंबक की तरह  खींचा चला गया था । एलिवेटर पर जाते समय भी मैंने देखा वे लोग तत्क्षण निकास द्वार  से बाहर निकल गए मगर ऐसा लगा जैसे वे लोग मुझे देखकर  भी अनदेखा  कर रहे हो । उन्हें दूर से  देखकर केवल सामान्य मुस्कराने के अलावा किसी भी प्रकार की बातचीत तक करने का सुयोग उन्होने मुझे नहीं दिया। इस बार भी उन्होने अपना  पता अथवा परिचय  नहीं दिया।  अब तक जिन लोगों से मेरी मुलाकात हुई , उनमें सबसे ज्यादा खूबसूरत थी, वे सबसे अलग
तब तक मेरी शादी नहीं हुई थी । एक युवा पुलिस ऑफिसर के रूप में शहर में उस समय तक मेरी एक अलग पहचान बन चुकी थी।  इस वजह से सारे क्लबों में,सारी मीटिंग में मेरा निमंत्रण अवश्य होता था । जन-साधारण को पहचानना मेरे लिए सहज था ,मगर इस लड़की और उसकी माँ का सटीक परिचय कोई भी मुझे दे नहीं पा रहा था ।  उनके चले जाने के बाद उनके परफ्यूम की मंद-मंद मधुर सुगंध मुझे अधीर कर दे रही थीं एक प्रकार का मादक भाव , जिससे निजात पाना सहज नहीं । मुझे मेरे अनेक दोस्तों ने कहा था कि वे अक्सर एक साथ में आती है सारे संभ्रांत समावेश में, और खूब उपभोग करती हैं नृत्य, खाना-पीना, पुरुषों की संगत, सब-कुछ। दो साल पहले उनको कोई पहचानता भी हो, वह लोग याद कर नहीं पाते थे  मां का कंठ स्वर अति-मधुर , पुराना हिंदी फिल्मों के गीत गाते समय धनी वर्ग के श्रोता लोग कभी-कभी मुट्ठी-मुट्ठी भर पैसे भी उस भद्र महिला के पाँवों-तले फेंक देते थे । मगर उस लड़की में इस तरह की कोई विशेष प्रतिभा न होने के बावजूद भी क्योंकि वह काफी पढ़ी-लिखी थी,  ऐसा लगता था जैसे इस उच्च वर्गीय समाज में कोई मन-पसन्द रोजगार का साधन खोज रही हो ।  
तीसरी बार उनसे मुलाकात हुए बड़े ही अभावित भाव  में । उनके किसी नजदीकी संबंधी अर्थात लड़की के चाचा  ने हमारे ऑफिस में आकर उनके बड़े भैया  के बहुत दिनों से गुमशुदा की खबर लिखित रूप में दी थी। उनके मत के अनुसार उनका भैया, जो कि स्थानीय पंजाब नेशनल बैंक में अधिकारी के पद पर थे ,विगत दो सालों से लापता हैं । बैंक में किसी भी तरह की छुट्टी का आवेदन भी नहीं किया । उनका  अपने परिवार के साथ भी किसी तरह का कोई संपर्क नहीं इस अवस्था में पुलिस को अवगत कराना वह अपना नैतिक दायित्व समझकर मुझे मिलने आए थे।  उस अपराह्न में हम दोनों मेरी जीप में बैठकर उनके भैया के घर की ओर निकले । जरा पथरीले ऊंचे स्थान  पर  तीन घुमाव के बाद थी उनकी विशाल कोठी ।
बाहर एक छोटे से बगीचे में मालती फूल बिखरे पड़े थे । कालिंग बेल के पास एक जगह पर मिश्र के मुखौटे जैसी कलाकृति सजा कर रखी हुई थी ।
कालिंग बेल की आवाज सुनकर वही लड़की ने दरवाजा खोला और शाम के चार बजकर पंद्रह मिनट पर मुझे पुलिस यूनिफॉर्म में देखकर उसका चेहरा मुरझाने जैसे लगने लगा । उसके कुछ कहने से पहले उसके चाचा जी ने मेरे सामने आकर बुलाया, “मामूनी, माँ को कह, हम विराज भैया की खबर पाने की कोशिश कर रहे हैं।सुलग्ना हमें ड्राइंग-रूम में बैठाकर अंदर चली गई ।
ड्राइंग-रूम में बेश कीमती सजावट वाले बहुत सारे समान सजे हुए थे। एक कोने में गहरे हरे रंग के  दीवान के ऊपर बाजार में उपलब्ध सबसे महंगी कुशन लगा हुआ था। कोने में सजाए गए  लेम्पसेट मुझे बहुत पसंद आए | सुलग्ना के चाचाजी ने मुझे अपने मन की बात कही,” मैं इस घर में देख रहा हूँ कि शोक का कोई नामो-निशान नहीं है । बल्कि सोफ़सेट भी नया लाया गया है , पास में कट ग्लास के सुंदर प्याले भी आ गए हैं, उधर म्यूजिक-सेट भी एकदम नया ।   विराज भैया इन सबको पसंद नहीं करते थे । एक घरेलू स्वभाव था उनका । परिवार और रिश्तेदारों से उन्हें खुशी मिलती थी । मगर रूबी  भाभी उनके बिलकुल विपरीत स्वभाव की । सजधज कर बाहर जाने के लिए हमेशा  तत्पर । होटल रेस्टोरेन्ट में खाना खाने , गहने-साड़ी पहनने में पैसा पानी की तरह  बहा देती हैं ....लगभग आधे घंटे के बाद माँ-बेटी ने हाथ में कॉफी और काजू भरी प्लेट लेकर प्रवेश किया ।
आप आए हैं, सुलग्ना ने बताया । लेकिन ऐसे असमय में क्यों...?  हम सोच रहे थे कि एक दिन आपको डिनर पर बुलाएँगे । इस बीच सुलग्ना का जन्म दिन भी है ....... ।वह इतनी आत्मीयता से कह रही थी कि मैं लज्जित अनुभव कर रहा था,  वास्तव में असमय आकर उन्हें परेशान कर दिया, शायद यह उनके विश्राम का समय था । भद्र-महिला के चेहरे पर सौंदर्य-प्रलेप के ईसत अंश अभी भी रह गए थे। मैंने कहा, “ मैं दुखित हूँ कि मुझे पता नहीं था आपके पति कई दिनों से गुमशुदा है । मगर आप तो  मुझे ये बात बता सकती थी !  अब इस सज्जन  व्यक्ति की इतला लेकर आना पड़ा ....... ।
भद्र-महिला दीर्घ-श्वास लेकर चुप रही और अपने पैर से बार-बार फर्श पर स्पर्श करने लगी। सच में, जैसे वह अपने मन के उद्वेग को शांत कर रही हो । मुझे ऐसा लगा, वह जैसे अपने इस गोपन-दुःख को मेरे साथ बिलकुल बांटना नहीं चाहती थीकेवल पिछले-सप्ताह में उससे मुलाकात हुई थी , जोश-खरोश से भरपूर शौकीन मिज़ाज की भद्र महिला की इस गुप्त वेदना के रहस्य के रहस्य का उदघाटन  से मैं उदास हो गया था ।
एक दिन वे अचानक कहाँ चले गये ।  सुबह मॉर्निंग वाक से और लौटे नहीं । मैंने पहले सोचा, आसपास कहीं  गए होंगे, कुछ जरूरी काम होगा, शायद इसलिए नहीं बताया होगा ।  मगर दिन पर दिन बीतते गए,  एक महीना हो गया । उनकी कोई खबर नहीं । मृत्यु अथवा ऐसी कोई घटना होती तो हमें जरूर खबर मिलती । ऑफिस में भी उनकी कोई सूचना नहीं थी । वरन उन्होने ठीक समय पर आकर उनके वेतन का पैसा ले जाने के लिए कहते थे और भरोसा भी दिलाते थे कि वे निश्चय किसी-न-किसी कारण की वजह से खुद भूमिगत हो गए है और एक दिन स्वयं लौट आएँगे । धीरे-धीरे हमने स्वाभाविक जीवन अपना लिया ।  मैं गाना गाती हूँ, एंकरिंग करती हूँ ,  अच्छा-खासा पैसा मिल जाता है । मेरी बेटी प्रसीडेंसी कालेज की स्नातक है , एक अच्छी छात्रा है, नौकरी की तलाश में हैं । इस तरह मैनेज हो जा रहा है । 
 उस दिन हमारी पुलिस जीप को वहाँ देखकर आसपास की खुली खिड़कियों से लोग उत्सुकता से झाँकने लगे थे ।  उस दिन मैं लौ आया और विराज बाबू के भाई को उसे ढूँढ निकालने का आश्वासन  दिया ,मगर मैंने इसके बाद खुद एक ब्लू प्रिंट तैयार किया । कहने का अर्थ, मैं उस खूबसूरत लड़की के प्रति ज्यादा आकृष्ट हो गया था और उसकी कलाप्रेमी रूपवती माँ के सामने कुछ कर पाने का दृष्टांत रखना चाहता था ।
  
कुछ दिन बाद मेरे नियुक्त किए दो सिपाहियों ने आकर बताया कि विराज बाबू बहुत ही शांत , और नरम स्वभाव के व्यक्ति थे ।  एक साधारण परिवार में जन्मे आर्थिक संघर्षों से जूझते हुए उन्होने शिक्षा पूरी की थी । बैंक लोन से बनाए हुए उस घर के अलावा उनके पास और कुछ जायदाद नहीं थी । उनकी कुछ भी खराब आदत नहीं थी, मगर उनकी  पत्नी शहर आने के बाद अचानक उसके स्वभाव में  बदलाव आना शुरू हुआ ।  और  वह अपने पति को अपने लिए पूरी तरह से अयोग्य मानती थी, यह बात लगभग सभी को मालूम था । और कानवेंट में पढ़ने वाली उसकी लड़की बचपन से माँ की बातों में आकर अपने पिता से पूरी तरह विमुख हो गई थी । स्कूल गेट से उसे लाते समय वह ऐसा  व्यवहार करती मानो वह अपने पिता के ऑफिस का कोई क्लर्क हो ! शायद उसके क्लासमेट भी बहुत दिन तक वैसा ही सोच रहे थे । पिता  के साथ बातचीत करते समय वह ऐसे अंग्रेजी बोलती थीं , जिसे देखकर कोई भी सोचेगा जैसे कोई मेमसाहब गुस्सा होकर घर के अर्दली के ऊपर चिल्ला रही हो । माँ ने भले ही इस तरह का अशोभनीय बर्ताव सभी के सामने नहीं किया हो , मगर वह कभी भी अपने कामों में पति का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करती थी । पहले-पहले वह सजधज कर अपने धनी सगे-संबंधियों के घर मिलने जाया करती थी और धनी महिलाओं के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाती थी । उनके समकक्ष होने का रास्ता ढूंढ़ती रही और उन लोगों की सहायता में क्लब इत्यादि में गीत गाना आरंभ किया था उसने ।
एक सुंदर नारी , कोयल जैसी मीठे गले की स्वामिनी और प्रतिभाशाली महिला क्यों पुरातन युग के रूढ़िवादी पति के घर के कोने में अपना सारा जीवन बिताएगी, यह बात मुझे समझ में नहीं आ रही थी । पहले पिता के अधीन,  बाद में पति और फिर पुत्र के जुल्म सहन करने में क्या किसी आधुनिक नारी का जीवन सीमित है ? पति और संतान के घर से बाहर चले जाने के बाद किस तरह  लग रही होगी उस घर की वह निस्पंद निर्जनताशायद वह घंटे-घंटे दर्पण के सामने खड़ी हो रही होगी, आर्तनाद कर रही होगी एक आत्मा के लिए , जो उसे समझ सकेगा , उसका साथी बनेगा ।  पति के पसीने भरे शर्ट को साफ करते समय उसे अपने प्रेमी के परफ्यूम की गंध याद आ रही हो । जवानी की भी एक कीमत है,  जिसके पास हीरा है , वह  जौहरी को ढूँढता है ।
मेरी माँ, मेरी बहन कितनी स्वाधीन ढंग से जीवन जी रही हैं ! सुबह के एक-एक ताजे सूर्यमुखी फूलों की तरह । मैं जिससे भी शादी करूंगा ,उसकी आजादी पर कभी अंकुश नहीं लगाऊँगा । इसलिए माँ बेटी का आचरण मुझे इतना ज्यादा विव्रत नहीं कर रहा था । भारतीय संस्कृति में जब तक सचराचर प्रेम विवाह संगठित नहीं होंगे ,अरेंज्ड मेरीज में यह मतभेद हमेशा बना रहेगा ही रहेगा ।  
किसी जमाने में तलमुदिक शासकों के कानून में, नारियों का सर्वसाधारण स्थान में संगीत गाना वर्जित था । क्योंकि नारी की आवाज सुनना का अर्थ उसकी नग्न रूप में कल्पना करने जैसा । यहूदियों में प्रार्थना के समय प्रथा के अनुसार महिलाएं नीरव प्रार्थनाएँ करती हैं। आजकल समाज में क्या ये सब बंधन ग्राह्य है ? और इसलिए अगर कोई भद्र व्यक्ति घर छोड़कर कहीं चला जाता है , तो  क्या ये लोग अनिर्दिष्ट शोक मनाएंगे या अपने को सती कहलाने के लिए आग में झोंक देंगे  ?
मगर फिलहाल वर्तमान मुख्य दायित्व है विराज चौधरी की तलाश, बाकी चीज बाद में ।  कौन किसको कैसे मानसिक  कष्ट देता है, सब बातें बाद में । वास्तव में,ऑफिस से , स्वजातीय परिजनों से और पड़ोसियों से विराज चौधरी की  कोई सूचना नहीं मिली । सुलग्ना और उसकी रूपवती गुणवती मां का भी कोई उत्साह नहीं दिख रहा था इस तरफ । वरन देखता हूँ , उनका हँसता हुआ चेहरा  मुझे देखते ही मुरझा जाता था । जिन लोगों को मैं अपने  पास होने का मौका  खुद दे रहा था , वे  क्यों दूरियां बनाते जा रहे थे, मैं बिलकुल समझ नहीं पा रहा था । वास्तव में, दर्पण  में दिखाई देने वाला चेहरा हमेशा ठीक वही चेहरा होगा, इस बात में मुझे संदेह हो रहा था ।
 उस दिन अपराह्न में विराज बाबू के एक दोस्त तथा समाजसेवी मित्र ने बातों-बातों में मुझे विराज बाबू के मानसिक चिकित्सा के बारे में सूचना दी । विराज बाबू के डॉक्टर से मुझे उसकी रक्षणशील मानसिकता के बारे में और अधिक जानकारी मिली  । वह  उच्च शिक्षित और उच्च पद पर नौकरी करने वाला अपने गाँव का पहला आदमी थे । इसलिए गाँव का जमींदार उन्हें अपना दामाद बनाना चाहते थे ।  उनके चार बेटे थे और एक खूबसूरत बेटी  । शहर में रहकर उसने पढ़ाई पूरी की थी , बहुत सुंदर और  सुरुचि संपन्न थी वह । मगर विराज बाबू उसके लायक नहीं थे । शुरू-शुरू में उनकी पत्नी ने बहुत कोशिश की थी अपने आप को एक आदर्श पत्नी के रूप में ढालने की । फिर उसने अनुभव किया कि उसके त्याग का कोई मूल्य नहीं है उसके अंधे पति के पास । नौकरी के पैसों से ऐश करने का तो प्रश्न नहीं है, ऊपर से उसे देखते ही विराज बाबू बिना मतलब क्रोधित हो उठते थे । इज्जत नहीं देते थे ।
अंदर ही अंदर इस मानसिक स्तर पर पर दूरियाँ की आग धधकने लगी उसमें और जैसे-जैसे उसकी बेटी बड़ी होती गई , माँ के प्रति बेटी का झुकाव बढ़ता गया, उस समय ही यह समस्या विस्फोट का रूप लेने लगी । उसके पत्नी को नियंत्रण में लाने के लिए घर का खर्च में कटौती कर देते थे और अंत में पत्नी के चरित्र पर भी उंगली उठाने लगे । उस दौरान सबसे  ज्यादा मानसिक यंत्रणा मिलने लगी विराज बाबू को ,क्योंकि उसके लिए अपने घर-संसार को अपने नियंत्रण में रखना और संभव नहीं था।  बाहर में जितना कठोर, अंदर में उतना ही टूट चुके थे वह । मगर लाचार .....

अचानक पता नहीं, क्यों मुझे ऐसा लगा ,क्या ये माँ-बेटी दोनों असल में इस घटना के बारे में जानती है या जान-बूझकर कुछ छुपा रही है । नहीं चाहते हुए भी अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए एक दिन रेड करनी पड़ी । विराज चौधरी की विशद जानकारी गिरफ्त होने के भय शायद वे अपने आप कुछ बता दें  अथवा कोई ऐसा सुराग मिल जाए !
जिस समय पास की मस्जिद के गुंबद से मौलवी  की अजान सुनाई दी   “अल्लाह हो अकबर” ,ठीक उस समय हमने  अपना कर्तव्य निभाते हुए कालिंग-बेल ज़ोर से दबाई । लगभग एक घंटे की कड़ी तलाशी के बाद उन्हें लफ़्टर की चाबी खोलने के निर्देश दिए । एक-एक कर इकट्ठे किए हुए पैसों से घर बनाने वाला आदमी, जिसने इस घर की स्वच्छलता के लिए अपना सारा जीवन कष्टों से गुजारा, उसे अपने इस अटारी (आटूघर) में तलाश करना कितना लज्जाजनक हैं , कहकर हमारी भर्त्सना की उसने । मगर हमने उसी आटू के भीतर से विराज की सूखी हड्डियों के ढांचे को बाहर निकाला । प्रारम्भिक अवस्था में अर्ध उन्माद की अवस्था में और बाद में लक्ष्यहीन एक निर्जन आत्मा की तरह भटकने लगे। इन दोनों ने ही उसे इस तरह दयनीय अवस्था में छुपाकर खा था। दो दिन में एक बार खाने के लिए देते थे उसे और रात के अंधकार में नित्यकर्म करवाकर फिर से आटू में भेज देते थे ।
मुझे और कोई सबूत की आवश्यकता नहीं थी । मैंने सुना अपने आंखों से और वह मधुर सुगंध  जो मुझे पागल बना देती थी,  अचानक एक बदबूदार दुर्गंध की तरह लगने लगी । मुझे सबसे सस्ता दारू भी सबसे खूबसूरत नारी से ज्यादा आकर्षक लगने लगा । छल-कपट के उत्स में मैंने खुद आग लगा दिया। पास-पड़ोस के सामने टीवी के पर्दे पर नृशंस अल्लाउद्दीन की तरह मैंने  उनको घोर अपराधी साबित करने से पहले सारी अग्रिम व्यवस्था कर दी थी और जीप में बैठाकर उन्हें हाजत में भेज दिया ।

Comments

Popular posts from this blog

बोझ

सबुज संतक