घूँघट की आड़ में


घूँघट की आड़ में
 
तीन पेग व्हिस्की उदरस्थ करने  के बाद नीरेन मोहंती का चेहरा कुछ अलग-सा लग रहा था। बातचीत भी जैसे बेखाप। दोनों आँखें थोड़ी विस्फारित-सी, निष्प्रभ होठों पर शैतानी हंसी। वह कहने लगे, मेरा किसी चीज पर विश्वास नहींप्रेम,परिणय और सतीत्व, किसी बात पर,किसी के ऊपर नहीं।
प्रशांत अचरज से देख रहा था। किसी लड़की का ऐसे आदमी के प्रति आकर्षण, क्या कभी हो सकता है? वैसा बिलकुल भी नहीं दिख रहा था उसमें। कभी वह उसे निपट मूर्ख समझ रहा था।  उस आदमी के मुंह से अभिज्ञ पुरुष जैसी बातें?
एक मुहूर्त के बाद अंतिम पेग समाप्त कर नीरेन मोहंती फिर से कहने लगा, “तीस साल पुरानी एक बात बताऊंगा जो मुझे आज भी अच्छी तरह याद है।मैंने  स्टाफ सलेक्शन परीक्षा उतीर्ण करने के बाद नासिक के सरकारी दफ्तर में काम करना शुरू किया था। मेरे साथ और एक ड़िया लड़के को भी नौकरी मिली थी। उसका नाम था शरत। साक्षीगोपाल के अंदर एक अंदरूनी गाँव में था उसका घर। उस साल उसकी शादी हो गई थी,मगर परिवार गाँव में रहता था। हम दोनों किराये के एक घर में साथ रहते थे।"
शरत एक बार लंबी-छुट्टी पर गाँव गया था और उसके पंद्रह दिन बाद मैं भी छुट्टी पर घर गया। मेरी शादी नहीं हुई थी। बचपन में ही मैं पिता माता को खो चुका था, मगर दादी का ममत्व और हमारे गाँव का निष्कपट जीवन मुझे वहाँ तक खींच लाता था। छुट्टी से जब मैं वापिस लौटा तो मैंने देखा शरत अपने पूरे परिवार के साथ वहाँ आया है। हमारा एक कमरे वाले किराये का घर इस दंपत्ति का घर बन बन चुका था। शरत ने मुझे समझाया," मेरी पत्नी आ गई है तो क्या हुआ ? हम पहले की तरह ही रहेंगे।"
बाहर बरामदे में मेरे लिए एक बिस्तर लगाया गया। केवल रात को ही तो सोना था। सारा दिन तो ऑफिस में बीत  जाएगा और फिर महीने में सात दिन टूर पड़ जाता है। घर का खाना खाने की आदत पड़ गई थी, गरम चावल,स्वादिष्ट सब्जी, बड़िचूरा,साग इत्यादि नासिक में कहाँ से मिलेंगे?
शरत की पत्नी अर्थात मेरी नई भाभी की मगर लजाने की कोई सीमा नहीं। मेरे सामने वह कभी नहीं आती थी। हमेशा सिर पर एक हाथ लंबी पल्लू। एक बार भी मैंने उस पल्लू को हटे हुए नहीं देखा। हमारे बीच में कभी बातचीत तक नहीं होती थी। वह केवल दो बार खाना परोसने के समय सामने आती थी, वह भी सिर पर वैसे ही पल्लू लटकाए। केवल दोनों हाथ और अलता रंगे पाँव बाहर दिखाई देते थे। सोलहसत्रह साल की तरुणी थी वह। चम्पाफूल के रंग की तरह वह बहुत खूबसूरत होगी,इसमें मेरा तिलमात्र भी संदेह नहीं था। लज्जाशील घूँघट के नीचे कभी भी उसका चेहरा दिखाई नहीं देता था। कभी-कभी उसका लाज-मिश्रित अस्पष्ट स्वर सुनाई देता था, वह भी शरत के साथ बातचीत करते समय ...... ।
लगभग चार महीने के बाद शरत को टूर में जाना पड़ा पंद्रह दिनों के लिए। घर में जवान पत्नी को अकेला छोड़कर। सरकारी नौकरी में इसके सिवाय कोई चारा भी नहीं था। उसकी नौकरी और तनख्वाह मेरे से बहुत कम थी।इसलिए पत्नी को साथ ले जाकर बाहर होटल में रहने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। इस वजह से शरत को उसे छोड़कर जाना पड़ा। उस समय मालती का रूठना,रोना-धोना और विरह-वेदना की तीव्र ज्वाला को मैं देख रहा था। मगर  शरत की अनुपस्थिति में हम दोनों कैसे रहेंगे ? न मेरी कभी मालती के साथ बातचीत होती थी और न ही मैंने कभी उसका चेहरा देखा था। मुझे बहुत ही अस्वस्तिकर लग रहा था । एक अविवाहित पुरुष के लिए यह नई परिस्थिति और भी ज्यादा जटिल हो गई। शरत मुझे समझाने लगा," कोई दिक्कत नहीं होगी। तुम दाल, चावल, सब्जी खरीदकर ले आना, वह तुम्हारे लिए खाना बना लेगी। केवल पंद्रह दिनों की बात है। फिर तुम्हारे रहने से मालती की हिफाजत की मुझे चिंता नहीं रहेगी।"
कभी-कभार शरत दोपहर में खाना खाने नहीं आ पाता था तो मालती अपने हाथों की चूड़ियाँ खनकाकर खाने पर आने के संकेत करती। मैं हाथमुंह धोकर खाने पर बैठ जाता था तो वह चुपचाप खाना परोसने लगती थी। वह दूर खड़ी होकर इंतजार करने लगती थी। ऐसे ही चलेगा,सोचकर मैं निश्चिंत हो गया था। सुबह शरत को ट्रेन में बैठाकर दिन भर अपना काम कर रात को जब मैं घर लौटा तो उसी तरह चूड़ियों की खनखनाहट के साथ खाने का निमंत्रण। रात का खाना खत्म कर बाहर बरामदे में चारपाई पर सोने ही जा रहा था,तभी मालती चुपचाप आकर मेरे बिस्तर के पास खड़ी हो गई। रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे। मालती की परेशानी मुझे समझ में नहीं आई। पूछने पर भी कुछ न बोलकर वह वैसे खड़ी थी। मैं बाध्य होकर उठ खड़ा हुआ। बिना कुछ कहे वह अचानक मेरे सीने से चिपक गई। मैं आश्चर्य चकित होकर थोड़ी देर बाद उसे सीने से हटाने की कोशिश करने लगा, मगर वह वैसे ही मुझसे ज़ोर से चिपकी रही और मेरा बचने का कोई उपाय नहीं था। ऐसे ही नोंक-झोंक में उसकी पल्लू खिसक गई। चाँद जैसा सुंदर चेहरा अंधेरी रात में दमकने लगा।  उसका प्रेम-निवेदन मेरे जैसे अविवाहित युवक के लिए अस्वीकार करना असंभव था।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि बाकी पंद्रह दिन हम अविच्छेद्य हो गए थे। मेरे सुख और तृप्ति की कोई सीमा नहीं थी। देखते-देखते पंद्रह दिन गुजर गए। अंतिम रात में मालती का व्यवहार बिलकुल अलग और अस्वाभाविक था। वह रोते-रोते कहने लगी, “ आपने यह क्या किया ? मेरा सर्वस्व लूट लिया, मैं कैसे जीऊँगी ? इत्यादि,इत्यादि ...
मैं अचंभित होकर देख रहा था उस मायाविनी को, क्या अभिनय! यह लड़की जिसने मुझसे खुद प्रेम-निवेदन किया था, समर्पण किया था, मुझे ऑफिस जाने के लिए छोड़ नहीं रही थी ,जल्दी घर आने के लिए कसमें खिलाती थी, फिर अचानक ऐसा आचरण ......?
यही नहीं, अभी रोने का अभिनय खत्म भी नहीं हुआ था कि तुलसी चौरा के स्तम्भ में सर पटक-पटककर खून निकालकर रोने लगी। अचरज और डर के मारे मैं चुपचाप घर से बाहर निकल गया रात को तीन बजे ही, शरत लौटने के पाँच घंटे पहले।  और बाकी सारी रात स्टेशन के विश्रामगृह में गुजारी ।
सुबह वहाँ चाय-नाश्ता कर अखबार पढ़ने के बाद समय पर ऑफिस चला गया। शरत के घर लौटने के बाद उसके गृहस्थ जीवन में हुई इस प्रकार की अप्रत्याशित घटना को देखकर वह क्या कर लेगा, उसी भय से उस दिन मैंने ऑफिस से दो दिन अवकाश लेकर सारे दिन नून शो, मैटनी शो फिल्म देखकर रात को रहने के लिए ऑफिस में व्यवस्था कर ली ।
शरत का काले भैंसे जैसा विशाल और भयानक चेहरा मेरी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। मैं सोच रहा था कि क्रोध में आकर वह अवश्य मुझे सबके सामने मारेगा-पीटेगा और अपमानित करेगा। उसी अपमान और मारपीट की आशंका में मैं खाना-पीना तक भूल गया था। उस पाप के पर्दाफाश होने का भय दिन-रात मुझे खाए जा रहा था। उस पीड़ा और मोह-भंग को मैं अपनी भाषा में व्यक्त करने में असमर्थ हूँ। सोलह-सत्रह साल के कम उम्र वाली सुंदर गंवार लड़की इतनी धोखेबाज निकलेगी और ऐसा अभिनय करेगी,यह सोचकर मैं आश्चर्य-चकित रह गया।
शरत के ऑफिस आते समय मैं उसके चेहरे के बदले हुए हाव-भाव देख रहा था कि कहीं उसके हाथों में मुझे मारने के लिए कोई अस्त्र तो नहीं है, क्योंकि वह शुरू से ही बद्तमीज़ और गुस्सैल स्वभाव का था। उसके हाथों मेरी मौत अवश्यंभावी है, यह बात सोच-सोचकर मैं उससे डर रहा था।
तीसरे दिन जब मैं ऑफिस गया, लंच के समय मैं वहाँ से अन्तर्धान हो गया था। उसके दूसरे दिन शरत ने मुझे पकड़ ही लिया, डर के मारे मेरी हालत पतली हो रही थी। मगर शरत ने ऐसा कुछ भी अशोभनीय आचरण नहीं किया वरन बहुत डांटने लगा कि मैं घर क्यों नहीं जा रहा हूँ ? “तुम्हारे घर में नहीं होने के कारण मालती फिसल गयी थी और उसका सिर में चोट लगकर खून निकला था और बहुत कष्ट झेल रही है,”  शरत मुझे कहने लगा। मुझे समझने में कुछ देर नहीं लगी,जरूर मालती की यह नई चाल होगी। मेरा दोस्त कुछ समझ नहीं पाया है, यह सोच विवशतावश मैं उसके घर लौटा। पहले की तरह सिर पर एक हाथ का घूँघट ओढ़े मायाविनी का निपुण अभिनय देख मेरे दिल की धड़कनें रुक-सी गई।
एक सप्ताह बाद शरत के फिर से ऊंटी टूर जाने पर मालती के प्रेम-निवेदन की पुनरावृति हुई ।छ महीने बाद मेरा ओड़िशा स्थानांतरण हो गया और फिर उन लोगों के साथ मेरा कोई संबंध नहीं रहा।
कुछ साल बीत जाने के बाद पता चला कि मालती की लड़की हुई है। शरत खूब पैसा कमाने लगा था और एक दिन नौकरी से निलंबित हो गया। वे लोग साक्षीगोपाल लौट आए और वहाँ आलीशान घर बनाकर व्यवसाय करने लगे।
नीरेन मोहंती की कहानी पूरी होते-होते बहुत रात बीत चुकी थी। वे निस्तेज पड़ गए थे। प्रशांत सोच रहा था उस मालती बुआ की कहानी, जिसकी उम्र फिलहाल छियालीस या सैंतालीस होगी, जो अपने पति को लंपट बताकर रो-रोकर उसकी सहानुभूति जीतना चाहती थी । प्रशांत के बड़े भाई की शादी मालती बुआ के साथ नहीं हो पाई थी और इस वजह से उन्होंने कसम खाई थी कि वह आजीवन शादी नहीं करेंगे।आज भी सुंदर मालती बुआ को पान चबाते मीठी हंसी हंसते देख कोई भी दीवाना हो जाएगा। किशोरावस्था से देखते आ रहे मालती बुआ का असली रूप ऐसा होगा,सोचकर प्रशांत की नींद गायब हो गई थी














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