दक्षिण नायक


दक्षिण नायक

      शहर से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर वाली यह जगह निशिकांत को बहुत प्रिय लगती थी। लगना स्वाभाविक था। चारों तरफ पहाड़, बाँस, कोचिला, आम और सागवान के घने जंगल थे। बीच-बीच में दिखाई पड़ते थे बहते पानी के झरनों के पथरीले नाले। बीच में पहाड़ की चोटी पर ब्रिटिश  जमाने का ढलुवाँ छत का विश्राम-घर । उसके सामने  दूब घास और रंगीन जंगली फूलों की वादियाँ थी। यहां से नजदीक गांव के आदिवासियों के हरे-पीले धान के खेत छोटे-छोटे गलीचों की तरह दिखाई दे रहे थे। कहीं-कहीं चित्रों की तरह नजर आ रहे थे, पर्वतों के ढलान पर मिट्टी से बने खपरैल छत वाले मकान। यहां शहर का कोई कोलाहल नहीं। न फोन, न अखबार। यहां बैठकर सन-बर्ड देखना उसे बहुत अच्छा लगता था। लाल, पीले, हरे, नीले, बैंगनी लगभग सारे सात रगों वाली बुलबुल जैसे छोटी चिड़ियां तितलियों की तरह फुदकती जा रही थी, एक डाल से दूसरी डाल पर। लाल चेरी-की तरह दीखने वाले बटवृक्ष फलों को खाकर उड़ जाती थी, धान के खेतों में लहरों की तरह। निशिकांत मन ही मन अपने जीवन में आई प्रेमिकाओं के बारे में सोच रहा थे ।अंततः उनका लक्ष्य था सौ की संख्या को अतिक्रम करने का था ,मगर अभी तक उसके जीवन में आई थी सत्तयासी । वास्तव में कासानोवा ने कैसे मैनेज किया होगा ? लिखित हिसाब के अतिरिक्त उसके और भी कई हो सकती है। जीवन के आदि में टाइगर वुड की कुछ ही यौन संबंधों को लेकर  भर्त्सना हुई थी, वह ब्लेकथा इसलिए । विश्व के श्रेष्ठ खिलाड़ी होने के बावजूद भी खेल से निर्वासित कर दिया गया,पत्नी ने तलाक दे दिया तो कई इंडोरसमेंट से पलक झपकते बहिष्कृत कर दिया गया । निशिकांत ने अपने चश्मा ठीक किए। जो भी हो, उनकी ऐसी दुर्दशा नहीं होगी, क्योंकि इटालवी प्रीमियर बर्लोस्किनी पर कभी कोई आक्षेप नहीं लगा। गोरे लोगों की तरह ही हैं, हमारे देश में आई.ए.एस लोग। जो उनके मन में आए, वे कर सकते हैं, किसी के भी पास उन पर कोई लगाम लगाने का हिम्मत नहीं है।
      निशिकांत ने देखा कि अलका सान्याल चेहरा धोकर अपने लंबे बालों को खुला रखते हुए एक बार और आई-लाइनर लगाई तथा होठों पर लिपिस्टिक लगाकर अपने नकली रूप में वह हाजिर हुई । निशिकांत के कंधे पर लंबी, मसृण अंगुलियों को घुमाने लगी ।
      माखनी रंग की सलवार कमीज पर एक सुंदर मणीपुरी चादर उस पर अच्छी लग रही थी। निशिकांत ने कहा, “आओ हम यहां बैठें । सुनहरी धूप का आनंद लेंगे।
      अलका सान्याल-यह उसका छद्म नाम । ठीक उके छद्मवेश की तरह। इसी नाम से निशिकांत अपनी अनेक प्रेमिकाओं को सम्बोधन करते हैं । अवश्य  उनमें से कोई नहीं जानती है यही नाम अनेकों का हैं और  प्रत्येक अपने को अपने प्रेम की अधिकारिणी समझकर खुश होती थी।
      “आओ, यहाँ आकर मेरे पास बैठो । वास्तव में तुमने कितना तरसाया है मुझे सच में ! तुम्हारे साथ दो तीन दिन गुजारने के लिए कितना बैचेन था मैं ! मगर तुम वही पुराने जमाने की ड़िया नारी की तरह हो । कुछ नहीं कर पाती । देखो, मैं तुमको कहां तक पहुंचा दूंगा। जो नारी मेरे से सम्पूर्ण विश्वस्त रहती है, मैं उसे स्वर्ग में भी पहुंचा सकता हूं।मगर ये बातें उसने बहुत ही मार्जित  ढंग से कही। इस प्रकार पुरुष और नारी नीतिरहित संदेशों को पकड़ कर बैठ नहीं जाते हैं। यौनता को सिर्फ यौनता समझने के लिए वे लोग कुंठित हैं, तो उसके ऊपर एक आवरण ही सही ! इससे पहले कि अलका सान्याल कुछ बोल पाती, निशिकांत ने उसे अपनी बाहों में जोर से खींच लिया और उसके पास खिसकने का कोई रास्ता नहीं था। यदि वह खिसकना चाहती तो यहां आती ही नहीं। सम्पूर्ण रूप में निर्जन इलाके में थे, केवल वे दोनों और अपराह्न की मोहिनी मादकता। निशिकांत एक अभिज्ञ पुरुष है, वह बात वह समझ गई थी। मगर धीरे-धीरे उसके चेहरे की रेखाएं स्पष्ट एवं बर्बर दिखने लगी। आकाश के नीचे, घास के ऊपर होने पर भी उसे एक निरंध्र बंदीशाला में दम घुटने जैसा लगने लगा। पाकेट से एक पान-पत्र जैसे लॉकेट वाली चैन निकालकर उसको पहनाते हुए निशिकांत कहने लगे , “अब से तुम पूरी तरह से मेरी हो ।थोड़े-से भय, थोड़े-से प्रेम, थोड़े-से क्रोध के अंदर घास के मैदान के मध्य एक दरी के ऊपर प्रेम कहे जाने वाले शब्द के बहाने घटना संघटित हुई ।
      निशिकांत व्यग्र होकर उसे मनाने के लिए कहने लगे , “और हमारे पास कितना समय है, कहो तो ? तुम तो जानती हो सब कुछ होने के बाद भी मैं कितना निसंग और कितना एकाकी ! पत्नी है, बच्चे हैं, नौकरी है, मान-मर्यादा है मगर मैं खुद कितना अकेला !
      पुरुष के इस अहंकार के भग्न-स्तूप, जो केवल झूठ की इमारत होते हैं, यह बात नारी कभी समझ नहीं पाती । इसलिए समाज में विवाह जैसी एक व्यवस्था बची रही  है। एक अपरिहार्य कैदखाने की तरह। एक प्रबल प्रवंचक पुरुष भी एक पल में ही अपनी पत्नी को बहला फुसलाकर उसके सुहाग पुनः आदाय कर लेता है। उनके जीवन में भी ऐसी घटनाएं घटी थी। पूरी तरह पकड़ में आ जाने पर उनकी पत्नी अपने बच्चों को लेकर अपने पिता के घर चली गई , तब उन्हें एहसास हुआ उनकी नुकसान की असली परिभाषा । उसके बाद उसने ऐसी भूल कभी नहीं की। अधिक चतुरता के साथ अपने एक्स्ट्रा मेरिटल संबंध बनाए रखने के लिए उसने अपने आपको छद्मवेशी छत्रपति के रूप में प्रतिपादित किया। अलका सान्याल जैसी कम उम्र और  बुद्धिमती लड़की को अख्तियार कर पाने में वह बहुत रोमांचित हो रहे थे ।
      आसमान की ओर चेहरा करके निशिकांत लेट गए और मुस्करा कर कहने लगे , “मुझे मालूम  था, तुम जरूर आओगी। और मुझे यह भी पता है, तुम भी खुश हुई हो । असल में शारीरिक आवेदन सभी के लिए जरूरी है।हमारा रूढ़िवादी समाज केवल झूठे कानून बनाता है, जो लुका-छुपी को प्रश्रय देता है । नारी और पुरुष के बीच निबिड़ संबंध जीवन के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए मौका मिलने पर प्रेम करने से मत चूको। मैं इसके लिए हमेशा असीम उत्साहित रहता हूं। वास्तव में कोई भी नारी सुंदर या कुरूप नहीं होती है. सभी नारियां सुंदर होती हैं। केवल पुरुषों की अयोग्यता के कारण नारियां अति शीतल हो जाती है। तुम भी शादी कर लो, देखोगी,  कितना अच्छा लगेगा।
अलका सान्याल की प्रेम कहानी के उन्माद मुहूर्त में सर्दी की शाम जैसे जल्दी ही आ गई हो और साथ में ले आई हो परत दर परत क्षोभ । क्या यह वही आदमी है जो उससे हर दिन प्रेम की मीठी-मीठी बातें करता था और अपनी पत्नी के असहयोग और जिद्दी स्वभाव के बारे में बताता था? उसे ऐसा लग रहा था, मानो उसके हृदय-स्थल पर एक बहुत बड़ा बर्फ का टुकड़ा गिरने लगा हो। निशिकांत के असली चेहरे पर उसके सपने की प्रतिच्छाया स्वार्थी-प्रेम का संकेत दे रही थी। एक आदमी कितने सहज भाव से उस चरम स्निग्ध पल से अपने आप को दूर कर लेता है ? इस बार उनका एक हाथ था उसके अपने सिर के नीचे तो दूसरा हाथ उसके उल्लसित वक्ष-स्थल पर ।चेहरे पर चरम तृप्ति की एक मधुर मुस्कान । अलका सान्याल भी खुश हो सकती  थी। मगर निशिकांत कहने लगा," जानती हो, मेरे पास घर-बंगले उच्च वर्ग की कुलीन पत्नी, दो सुंदर बच्चे सब-कुछ हैं। मैं बहुत खुश-किस्मत हूं। यद्यपि मेरी पत्नी पूरी दुनिया में सबसे अच्छी है, मगर वह तुम्हारे जैसी आमोददायक नहीं। अब तुमने उस कमी को भर दिया।
      अलका सान्याल को  अब समझ में आ गया था कि वह प्रेम नहीं था , केवल स्वांग था। इस प्रकार के पुरुष प्यार नहीं करते हैं, शोषण करते हैं, केवल अपने सुख के लिए। उसकी हिम्मत नहीं हुई, उसको छूने के लिए और न ही इच्छा हुई रोने के लिए। वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी कि किसी भी प्रकार के दुर्बलता के लक्षण जैसे  उसके चेहरे पर दिखाई न दें।
      उसके दूसरे दिन सुबह आठ बजे के तकरीबन निशिकांत ने कहा, “चलो, जल्दी तैयार हो जाओ, हमें लौटना होगा। बंगले के चौकीदार उर्फ रसोइये ने टोस्ट ऑमलेट तैयार करके नाश्ते के लिए दे दिया। अलका सान्याल अब समझ गई कि उसकी भावना-अभावना, आग्रह-अनाग्रह का निशिकांत के पास कोई महत्त्व नहीं है। वह शर्म और अपमान के दो घूंट पीते हुए कहने लगी, “हम लोग तो यहां दो दिनों के लिए आए थे।
      निशिकांत ने अधीरता से उत्तर दिया, “मगर मुझे तो दो दिन तक प्रतीक्षा  नहीं करनी पड़ी । अब सब बराबर है, बार-बार केवल पुरानी बातों को दोहराने जैसा होगा ।  ऐसी पुनरावृत्ति में मुझे आनंद नहीं मिलता ।इसके अलावा मुझे प्राप्ति तक पहुँचने से ही सुख मिलता है । लक्ष्य-स्थल पर पहुंचने के बाद यह नशा मुझे पहले की तरह तन्मय नहीं कर पाता।
      अलका सान्याल ने दर्पण नहीं देखा, क्योंकि उसकी दोनों सुंदर आँखों में अजस्र आँसू छलक रहे थे । सारा अपमान सहन करने के बाद वह कहने लगी, “ठीक है, फिर कभी सही,, मेरे भी बहुत काम बाकी थे, अच्छा हुआ।
      उनके लौटते समय रास्ते में निशिकांत की कई औरतों के साथ फोन पर बातें करते थे, ठीक  जैसे कि एक दिन पहले उसके साथ। कार के झरोखे से झांककर अलका सान्याल आदिवासी नारियों को देख रही थी। इतनी कम उम्र में भी कोई गोद में बच्चे लिए तो कोई  सिर पर पानी लेकर जा रही हैं, तो कोई लकड़ियों की गठरी लिए । कोई धान की खेत में काम करती थी, तो कोई रास्ते के किनारे बैठ कर दारू बेचती थी । इन कर्मठ स्त्रियों के चेहरे पर ये कैसे निरीह भाव, लगता है शायद इनके शरीर भी फूलों की तरह कोमल है। कितनी स्वच्छता है उन लोगों के व्यवहार में,  और कितनी लाज बची हुई है उनमें शहरी लोगों के प्रति ! जबकि ये शहरी बाबू लोग उनके साथ किस तरह दुर्व्यवहार करते हैं ?
उन अनजाने आदिवासी युवतियों के बीच वह जैसे अपने वजूद को पहचान पा रही थी यह व्यवहारिक नहीं होती है, वह पुरुष का खिलौना नहीं है। वह स्वयंवर रचाती है अपने योग्य वर चयन करती है। जो उसका प्रेमी हो सकता है, पति हो सकता है। भीतर ही भीतर बदले की भावना से रूपांतरित नारी ने वर्तमान की वास्तविकता के साथ ताल-मेल बैठाना शुरू किया । सालों-साल से प्रेम की कल्पना तथा भावावेग कितने त्रुटिपूर्ण थे, उसने मन ही मन अनुभव किया। इसलिए निशिकांत के हाथों से अपने को छुड़ाकर मोबाइल से खुद बात करने लगी। मानो निशिकांत के प्रति अब उसमें कोई आत्मीयता नहीं बची थी। निशिकांत को बड़ा बैचेन लगने लगा, उपेक्षा करना जैसे सिर्फ उनका ही अधिकार है, और अल्का सनयाल जैसी एक मामूली लड़का उनको अनदेखा करेगी वह कैसे बर्दाश्त कर पाते ! इसलिए एक बार फिर उसने और उसके साथ मधुर बातें करना शुरू किया। उसे फिर एक बार अख्तियार करने की गोपन अभिलाषा थी उसके मन में। उस समय वह उसकी आँखों की बहुत तारीफ करते थे, अब अंगूठे के ऊपर उसकी नजर थी। उनकी सोच थी नारी शरीर का कोई एक भी अंग अच्छा लगे तो बहुत है ।
      अलका सान्याल के परिवर्तित मन ने सारी चीजें भांप ली और उसी रात को ही  एक बार मिलने का उसको  आश्वासन भी दिया। निशिकांत मन ही मन खुश हो गया कि उसने उकी बात रख ली। उस दिन उसने गुनगुने पानी में अच्छी तरह स्नान करके बालों पर रंग पुतवा दिया, मानो पहला पहला प्यार हो। किसी कुशल प्रेमी की अभिज्ञता से अलका सान्याल को अपने वश में करके फिर आनंद के चरम बिंदु पर बड़े शान से फिर उसको परित्याग करने के लिए उनका चक्रांत था । अच्छी वेशभूषा ओर सुंदर जूते पहनकर वह सज-धज कर अभिसार में  निकल पड़े । अलका सान्याल ने भी काव्य-नायिका की तरह अपने आपको खूब सजाया था। मोतियों की माला के चोकर पहनकर फ्रेंचनॉट में बाल बांधकर वह पहले से ज्यादा सुंदर एक राजकन्या की तरह दिख रही थी। जब वे दोनों फिर से मिले , देखते ही आलिंगन कर आनंद जताए ।
लगभग आधी रात के समय उठकर निशिकांत ने कहा, “मेरी पत्नी मेरी राह देख रही होगी। मुझे जाना होगा। वह भले ही, तुम्हारे जैसे हम-बिस्तर नहीं हो पाती है, मगर वह बहुत खूबसूरत है। मैं उसे बिलकुल भी कष्ट नहीं दे सकता। तुम्हारी जैसी बहुत आईं हैं । तुम भी चली जाओगी। मुझे फिर और 13 नायिकाओं से मिलना होगा....। वह हंस रहा था, उनका अहंकार वास्तव में अब सिर चढ़कर बोल रहा था। वह हमेशा इस खेल में जीतते आए है। वह बुद्धिमान है। वह दक्षिण नायक है।
      अल्का सनयाल बोलने लगी, नितांत सहज ढंग से, शांत होकर, अत्यंत निष्प्रभ गले से, साधारण बात की तरह,कल मुझे पांच लाख रुपए नकद भिजवा देना सुबह बारह बजने से पहले पहले....।
      वह निशिकांत को अपना प्रेमी की स्थान पर और नहीं रखी थी। मगर उसे वक्त पड़ने पर काम में आने वाले सिर्फ एक आदमी के रूप में मान रही थी, उससे अपना काम निकालने के लिए संस्कार व्यवस्था के नियमों की कोई आवश्यकता नहीं थी। निशिकांत चौंक कर विद्रूप स्वर में कहने लगे, “तुम होश में तो हो ? मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी वैश्या के साथ बातचीत कर रहा हूं। तुम्हारी कीमत कोई पांच हजार रुपए भी नहीं होगी, किलो के भाव हिसाब करने पर भी। हाऊ केन यू बी सो स्टूपिड ?”
      अलका सान्याल निरुद्विग्न । वह कहने लगी, “आज रात की स्टूपिड़ प्रेम कहानी की सारी रिकार्डिंग मैडम के पास भिजवा दूंगी ? पूरी है, शुरू से लगाकर अब तक की.....।
      निशिकांत के जीवन में ऐसी अप्रत्याशित दुर्घटना थी यह पहली बार । इस तरह की ब्लैकमेलिंग उसे बिन बादलों के वज्रपात की तरह लगी। मगर चालाक और  सुंदर अलका सान्याल के चेहरे पर लेशमात्र भी दयाभाव या मधुरता नहीं थी। उसके चेहरे पर कठोर वास्तविकता और घृणा के भाव स्पष्ट झलक रहे थे। निशिकांत समझ गया कि आज के बाद  जीवन और पहले जैसे नहीं रहेगा। इस चक्रव्यूह के छूपे दरवाजे के बारे में वह पूरी तरह अनभिज्ञ थे। उसे खूब सोचना पड़ेगा। वह अलका सान्याल को पैसे देने की प्रतिश्रुति देकर बाहर निकल पड़े
आकाश तारों से छाया हुआ था। मगर दिग्दर्शक ध्रुव-तारा उसे कहीं नजर नहीं आ रहा था। उनकी खरे सोने की मुखौटा की असली रूप अब अलका सान्याल के दर्पण में स्पष्ट दिख रहा था । अब वह बात उसके दिमाग में अच्छी तरह आ गई थी कि पूरी तरह से आत्मसमर्पण एक अत्यंत ही यंत्रणा-दायक जटिल प्रक्रिया है। कुछ ही समय पहले उन्होने मधुमक्खी के दंशन की  तरह उसके प्रति कटाक्ष किया था , “ऐसी भूल उसने क्यों की ?”
      होटल-रूम से अलका सान्याल भी बाहर निकाल गई और पीछे छोड़ दी क्षत-विक्षत उसका  अमेल अनुभव। उसे ऐसा लग रहा था, मानो उसने अपने आपको पुरुषों के चंगुल से सालों-साल तक बिछड़े हुए पुरुषों की माया-जाल से हमेशा के लिए मुक्त कर लिया हो। प्रेम-संबंध के विच्छेद का मंत्र उसने लिखा-  इच्छा-इच्छा, इच्छा तो नहीं है शरीर का व्याकुल आलाप ?




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