सिकंदर


सिकंदर
हर रोज की तरह वह बिस्तर पर लेटी माँ के कमरे की दहलीज के पास आकार खड़ा हो गया। यक्ष्मा से पीड़ित माँ को भी इस बात का अहसास है, वह भी हमेशा की तरह दीवार की ओर मुंह करके सोती रहती। चारपाई के बिस्तर से महीनों तक बीमार शरीर पड़े रहने की वजह से दुर्गंध आने लगी थी। सीता माँ अब एक साडी को तीन दिन तक पहनती थी। और एक को समेट कर सिर के नीचे ड़ाल देती थी। एक-दो बर्तन,मुट्ठीभर चावल,थोड़ी-सी दाल,इमलियों को छोडकर घर में कुछ भी संपदा  नहीं थी। मगर सीता माँ के इकलौते बेटे के रोजगार का कोई हिसाब नहीं। हर रोज उसी के कारण रेलवे लाइन के किनारे के गरीब लोगों की बस्ती में चूल्हे जलते थे ।
सिकंदर चोरी करता था , मुख्यत: मालगाड़ी लूटता था । देखने में लंबा-चौड़ा,लगभग छह फीट ऊँचा और गोरा-चिट्ठा । उसके पिता कौन थे ,वह नहीं जानता था । बचपन से सिर्फ माँ को देखते आ रहा था । लोग कहते थे, उसकी माँ हैरी साहब के घर काम करती थी , बर्तन माँजती थी ,पोंछा करती थी –सारे काम करती थी! हैरी साहब रंगीन मिजाज वाले थे । सिकंदर का चेहरा देखकर लोग कहते हैं कि शायद उसके शरीर में हैरी साहब का खून है । उसका सुंदर ,सौम्यकांत चेहरा देखकर लोग उसे सिकंदर के नाम से पुकारते थे । बचपन के दिनों वाली “राजू” नाम की पुकार केवल अब माँ से ही सुनता था , और उस माँ ने भी कई महीनों से उसके साथ बातचीत बंद कर दी थी ।
सिकंदर का पढ़ाई में मन नहीं लगता था । स्कूल जाने के बहाने वह लट्टू की तरह घूमता रहता था सारे जटनी बाजार में । इसलिए सारा शहर उसके नाखून के आईने में था । बचपन में आम व कटहल चोरी करता था , मगर दिन में मुट्ठी भर अनाज नहीं मिलने वाले गरीब बच्चों में सब बाँट देता था । बड़े होने के साथ-साथ छोटी-मोटी चोरी करना सीख गया वह । जटनी में अब भी एक चोर बाजार है , सुबह पाँच बजे से वहाँ पाँव रखने की जगह नहीं मिलती है ,मगर सुबह छ-सात बजे सब सुनसान – इतने बड़े बाजार में इतने ग्राहक इकट्ठे हुए थे , कहने से कोई भी विश्वास नहीं करेगा , वहाँ क्या चीज नहीं मिलती ? रेल और मालगाड़ी से लूटे हुए सामानों के साथ-साथ पाँच नंबर नेशनल हाई-वे से रात को लूटे हुए ट्रकों का सारा सामान कम दाम में मिलता है । चावल, दाल, चीनी, साबुन से लेकर घड़ी, रेडियो, टीवी तक सब सामान  वहाँ उपलब्ध । फ्रेश माल, मगर बहुत कम दाम में । सिकंदर को चोर-विद्या सीखने वाली यह थी स्कूल । मगर सिकंदर अलग स्वभाव का था ।
सिकंदर लूट करता था ,सही में,मगर चोरी के सामान की एक भी चीज अपने घर नहीं ले जाता था । दो वक्त भरपेट खाने के अलावा उसका कोई और शौक नहीं था । सारी चीजें वह गरीबों में बाँट देता था । वास्तव में , मानो वह उन्हें बांटने के लिए चोरी करता था !
सिकंदर की माँ को यह सब पसंद नहीं था । सीता के मन में था कि सिकंदर पढ़-लिखकर गोरे साहब की तरह बड़ा आदमी बन कोई बड़ी नौकरी करें । इसलिए उसने हैरी साहब से बहुत निवेदन भी किया था । पाँच साल के राजू को वह कौनसी नौकरी में भर्ती करते ! उसके बाद वह बच्चा भी उस जर्जर बंगले में जाना बिलकुल पसंद नहीं करता था , गेट पर हाथ लगाते ही बड़े कुत्ते अपने दोनों पैरों पर खड़े होकर शिकार कि मुद्रा में ताकते रहते जैसे । बंगले से कभी-कभी लाए हुए खाद्य –पदार्थ ,केक आदि राजू कभी मुंह में नहीं लेता था । उस आदमी के प्रति छोटे राजू की खूब नफरत । माँ के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए ,जिस दिन सिकंदर को अठारह साल की उम्र में उसके जन्म-दिन पर पहली बार जेल की सजा हुई थी । उस दिन सिकंदर ने हैरी साहब की चांदी की एश-ट्रे चोरीकर चोर बाजार में बेच दी ।
जेल में अंदर होने से लेकर बाहर निकालने तक के समय को छोडकर हर रात सिकंदर की प्लेटफॉर्म में बीतती थी । निशाचर की तरह वह घूमता रहता था, इसलिए साधारण लोगों के घरों में कम चोरियाँ होती है । सभी को सिकंदर का भय । पुलिस की पकड़ में आने से सुरक्षित है ,मगर सिकंदर की मार से कोई निस्तार नहीं । सिकंदर की ये सारी अजीबो-गरीब नीतियाँ सीता माँ को पसंद नहीं थी । कभी अगर सिकंदर अपनी माँ के लिए अच्छी साड़ी या कभी अच्छा खाना लेकर आता है तो सीता माँ उसे आँगन में फेंक देती थी । सिकंदर बहुत दुखी होता है। दूसरों के घर आबाद करने वाले सिकंदर को अपने घर में एक पत्थर रखने का भी अधिकार नहीं , मगर माँ की बात रखने के लिए दिहाड़ी मजदूर की तरह मजदूरी करने के लिए भी अपने आप को तैयार नहीं कर पाता था । माँ ने बहुत दिनों तक लोगों के घर बर्तन माँजकर घर चलाया था । अब जिस दिन से वह बीमार पड़ी थी , उस दिन से उन लोगों के घर से कभी-कभी भीख लाती थी । सिकंदर यह बात बर्दाश्त नहीं कर पाता था , मगर वह लाचार ! चोरी मानो उसका नशा हो गया था ,और चोरीकर गरीबों के बीच बांटना ,उनके सुख-दुख में शामिल होना उसके जीवन का उद्देश्य बन गया था बचपन से ।
सिकंदर को पकड़ना इतना आसान नहीं था । तेल से मालिश किया हुआ उसका पच्चीस साल का जवान मसृण शरीर , गतिविधियां अत्यंत प्रखर , नजर बहुत तीक्ष्ण । पलक झपकते ही दस ट्रक कूदकर वह ऐसे पार हो जाता था, जैसे कोई चीता कूदफांदकर अन्तर्धान हो जाता हो । उतना ही नहीं, चलती ट्रेन के डिब्बों से वह इस तरह कूद-कूदकर चला जाता था ,कि बिना देखे विश्वास भी नहीं होगा । ट्रेन की सारी गतिविधियां, समय, वेग सब मानो उसकी मुट्ठी में।
अगर एक सेकंड इधर-उधर हो गया तो उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे ,मगर उसे किसी भी प्रकार का भय नहीं । इसलिए जटनी के सारे बाजार में उसकी चर्चा जोरों पर, उसकी बहादूरी, उसके साहस और दानशीलता के बारे में । बच्चे उसे हीरो समझते थे, पुलिस हाथ धोए बैठी थी , उसे पकड़ने की तलाश में ।
पुलिस सब जानती थी, मगर सिकंदर को जेल नहीं होती थी । कभी-कभी सिकंदर चोरी के माल से दाल, चावल, चीनी के बोरियाँ पुलिस बैरेक में रख देता । स्वल्प-वेतन, ऊपरी कमाई के रास्ते कम, बैरेक में राशन की चीजें अति-निम्न स्तर और कम मात्रा में होने के कारण बिना कुछ पूछताछ किए वे सब ग्रहण कर लेते थे निम्न स्तर की पुलिसवर्ग में लगभग सभी सिकंदर के शुभाकांक्षी थे । सब-कुछ जानने के बाद भी वे सिकंदर की चोरी को नजर-अंदाज कर देते थे ।
कभी-कभी धरपकड़ होती है , शहर की चोरी और अपराध रिकॉर्ड दिखाने के लिए उसका नाम डालना पड़ता था । सिकंदर को पहले ही सूचित कर दिया जाता था , लेकिन वह चुपचाप बैठ नहीं पाता था । सिकंदर फिर से चोरी करता था  ,पकड़ में आता था  ,उसे जेल होती थी । जेल में इस प्रकार की चोरी के लिए दंड की मात्रा कम होती थी । सिकंदर जेल में बहुत मेहनत करता था, कहता था,  बिना पठार काटे या बिना चक्की पीसे जेल का कंकड़ भरा बिगड़ा भात, दाल, जली रोटी उसे हजम नहीं होती है । मगर उसकी कठिन मेहनत  और उत्तम व्यवहार देखकर उसका दंड माफ हो जाता था ।
आखिर एक महीना पंद्रह दिन पहले ही उसे जेल से छोड़ दिया जाता था । पेशेवर मनुष्य की तरह उसी रात वह चोरी के लिए निकल पड़ता था, भले ही उस रात सावन की बारिश हो , या भादों की पूर्णिमा हो , उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था । उसका यह नशा ,मानो जीवन के दुख और हताशा  को भूला देते हो । अन्यथा ,नशे की सारी चीजों शराब ,गाँजा , स्त्री सभी से वह कोसों दूर ।
जिस दिन से एक नॉन-ओडिया आईपीएस अधिकारी की नियुक्ति हुई थी यहाँ , तब से उसका यह पेशा ज्यादा जटिल हो गया । हवलदार ,कांस्टेबल धरपकड़ होने से पहले ही सिकंदर  को खबर भेज देते थे । उस दिन वह चोरी नहीं करता था । मगर पिंजरे में बंद चीते की तरह छटपटाता रहता था । उसे पकड़ने के लिए ऑफिसर ने मानो प्रतिज्ञा कर ली हो । सिकंदर जैसे एक चेलेंज हो , शाबासी पाने का लोभ । हर दिन पुलिस का पहरा कडा होता गया । उसे पकड़ने से पदोन्नति का प्रलोभन  दिया गया । धीरे-धीरे कई लोगों में सिकंदर के प्रति ममता कम होती गई ।
लगभग दस-बारह दिन चोरी छोड़ने के बाद सिकंदर और चुप नहीं बैठ पाया । पकड़ में आने से जेल । माँ को एक हफ्ता हो गया बिस्तर में पड़े । अगर उसे जेल हो गई तो उसकी माँ को देखने के लिए और कोई नहीं रहेगा, सोचकर सिकंदर की आँखों में आँसू आ गए । मगर माँ ने एकबार भी मुड़कर नहीं देखा ।
रात को तीन बजे वह स्टेशन पहुंचा । मालगाड़ी के वेगन तोड़कर दो बोरे चीनी लाकर एक सुनसान कोने में छोड़ जाते समय पुलिस के जूतों की आवाज सुनकर वह खड़ा हो गया । दूसरा समय होने से भय की कोई बात नहीं थी । ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन जेल होगी उसकी उसे परवाह नहीं थी । मगर इस बार पूरी फोर्स के साथ साहब खुद आए है ,और बचने का कोई उपाय नहीं । अचानक फायरिंग हुई । गोली आकर उसके कंधे में लगी । नींद न टूटने वाले स्टेशन में अकस्मात विभ्राट शुरू हो गया , सब इधर-उधर भागने लगे , गली के कुत्ते भी ज़ोर-ज़ोर से भौकने लगे ।गरम चाय डालते-डालते चाय वाला स्वयं बोला , शायद आज सिकंदर को पकड़ा जा रहा है । इस बार का प्लान मगर फूलप्रूफ था । स्टेशन के इस तरफ से दूसरी तरफ तक जाल बिछाया गया था । सिकंदर को जब इस बात का आभास हुआ कि परिस्थिति और उसके नियन्त्रण में नहीं है , वह भागने लगा । मगर सभी के हाथों में बंदूकें, सभी प्लान करके आए थे । बंदूक की गोलियों से उसका सारा शरीर छलनी हो गया । खून से लथपथ होकर उसी ट्रेक पर उसका मृत शरीर गिर पड़ा । सच में जैसे उसे जान से मारकर ही एक बड़े अपराधी का खात्मा होगा , यह सोचकर डिपार्टमेन्ट ने निर्णय लिया था ।
दूसरे दिन सुबह चोरबाजार मानो श्मसान हो गया था । जटनी शहर के रास्ते भर शोक का समुद्र । खबर सुनकर बस्ती के सारे लोग रास्ते पर आ गए थे , दोपहर तक शवयात्रा में सूईं रखने के लिए भी जगह नहीं थी । सभी की आँखों में आँसू ,बहुत लोग अपने परिवार के सदस्य को खोने की तरह अनुभव कर रहे थे । पुलिस को देखते ही लोग आपे से बाहर हो रहे थे । सीता माँ मानो पत्थर बन गई थी, उसके संसार को तोड़कर पक्षी उड़ गया था हमेशा-हमेशा के लिए ।




















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