आश्रय


आश्रय
शहर के जिस प्रांत में दो तोतों की तरह वह दोनों उड़कर पहुंचे थे , उन्हें पता नहीं था यहाँ सब हृदयहीन लोग रहते थे । एक विशाल अट्टालिका के किसी कोने में एक कमरे का घर । साथ में रसोई एवं अटेच बाथरूम । खिड़की खोलने से आगे तीन फीट की दीवार और केवल पाँच-छ फीट दूर एक तीन मंज़िला प्रासाद । पीछे वाले ग्रिल की ओर से देखने पर भी उसी तरह का एक प्रासाद । सामने एक प्रशस्त बगीचा ,साल भर फूलों से भरा एवं रंगीन पत्तों के गुच्छों से भरपूर ।
मात्र सत्तरह साल की माया । मूल रूप से वे लोग राजस्थानी । यायावर की तरह घूमने के दौरान वे राऊरकेला के स्थायी वासिंदे बन गए । जिसका हाथ पकड़कर माया आधी रात को अपनी जगह बचाने के लिए घर से बाहर निकल आई थी , वह था जावेद । जावेद और माया पड़ोसी थे । जावेद के पूर्वज बिहार से आए थे कामकाज की खोज में । वर्तमान यह यायावर परिवार स्टील शहर में टाइल्स मिस्त्री का काम करता है और माया के पिता स्टील-प्लांट में सिक्यूरिटी-गार्ड ।
सत्तरह वर्षीय तरुणी माया देखने में गोरी,लंबी-पतली और बहुत खूबसूरत । उसकी गोल-गोल दोनों आँखों में निरीह-निष्पाप हिरनी के आँखों जैसी मनमोहिनी मादकता । हाथों में सात रंग की चूड़ियाँ और माथे पर पाँच इंच लंबा सिंदूर का प्रलेप । माया बहुत कम समय बाहर निकलती थी । घर से भाग आने के कारण पकड़ में आने का भय । पकड़ में आने पर उसका परिवार निःसंदेह उसके पति को जान से मार देगा , इस विषय में वह पूरी निश्चित थी । जावेद पढ़ा-लिखा था और एक राजमिस्त्री के रूप में काम करता था । एक जगह पर कोठी बनाने का काम पूरा होने पर वे चले जाते है किसी और शहर में । जहां काम , वहाँ उनका घर-संसार , भुवनेश्वर में वे लोग नए केवल छ महीने के अतिथि ।
माया जिस बिल्डिंग में किराये पर रह रही थी, वे लोग मेरे नजदीकी मित्र भी रहते थे । वह भी किराएदार थे , फर्क इतना कि वे दुमंजिला मकान में रहते थे । मित्र एक नामी कंपनी में काम करते थे । अच्छी सेलेरी ,मगर खर्च करने वाला कोई नहीं । वे निःसंतान है । सारा दिन घर में आराम करते है , लंच के समय प्रायः बाहर निकल जाते थे  रात को विलंब से घर लौटते थे । दिन में चौकीदार,माली व तत्वावधारिका को छोड़कर माया किसी और को नहीं देख पाती थी ।
जिस दिन मैं पटनायक निवास पर पहुंचा, उस दिन पहली बार गेट के पास माया को देखा । लाल रंग के सलवार कमीज पर काले रंग की मोटी चुनरी से आधा मुंह ढका हुआ था उसने । उसका सुंदर उज्ज्वल चेहरा पूर्णिमा के चाँद की तरह बादल की चादर के भीतर से नजर आ रहा था । वह अन्यमनस्क होकर दिगंत की ओर देख रही थी । छोटी-सी उम्र में इस तरह का उदास चेहरा मेरे जैसे प्रौढ़ आदमी को ज्यादा कष्ट देता है । मैंने पूछा, “ पटनायक बाबू है ?”
उसने चौंककर उत्तर दिया, “ कौन?”
मुझे पता चल गया कि वह लड़की ओड़िया नहीं है । फिर से मैंने प्रश्न किया । उसने कहा , “ मुझे मालूम नहीं , आप चौकीदार से पता कर लीजिए।
चौकीदार से पता किया । पटनायक सपरिवार कोलकता गए थे । परसों सुबह लौटेंगे।
जाते समय मैंने उससे पूछा, “तुम कौन हो ? यहाँ क्या करती हो ?”
माया ने उत्तर दिया , “मेरा नाम माया है । हम यहाँ उस कोने के घर में किराए पर रहते है।
इतनी कम उम्र में तुम शादी कर चुकी हो ?”
वह हंसी । कहने लगीं ,” हमारे गाँव में तो पाँच-छ साल में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। मैं तो अपने घर से छुपकर भाग आई हूँ। मैं जिसे प्यार करती थी उसके साथ शादी करके।  ”
माया के बारे में मुझे और बहुत कुछ जानने की इच्छा हुई । माली को बगीचे में दो चेयर डालकर केयरटेकर औरत को दो कप चाय लाने के लिए कहा । माया भी खुशी-खुशी से गप करने के लिए बैठ गई ।
माया सच में एक माया की तरह लग रही थी ।
एक मधुर मुस्कान हमेशा उसके होठों पर , इसलिए विषादग्रस्त आँखें उसे बहुत करुण बना दे रही थी । माया मुझ पर इतना जल्दी भरोसा कर लेगी , सोचा न था । शायद वह मुझे कुछ दिनों से अनुद्यान कर रही थी और मेरे ऊपर उसका भरोसा आ रहा था । मुझे अंकल के नाम से पुकारना शुरू किया । मेरे दो बेटे हैं। वे नौकरी करते है किसी दूर शहर में , इसलिए यह लड़की मुझे मेरी बेटी जैसी लगी ।
माया ने कहना शुरू किया ,भरे  कंठ से । उसके माँ-बाप उसकी शादी करना चाहते थे उसकी जाति के किसी बेकार आदमी के साथ । उसके पिताजी और भाई व्यापार करते हैं । आदमी की उम्र थी तीस साल । उसके चेहरे पर थे कठोर भाव । माया उसे जानती थी क्योंकि वह भी उस बस्ती में रहता था । कभी कहीं नहीं जाता  है, काम नहीं करता है , ऐसे आदमी से वह शादी नहीं करना चाहती थी । माया स्कूल में पढ़ रही थी अपनी जिद्द से । सातवीं क्लास के बाद उसके पिता की जिद्द चली । आज तक वह मार नहीं भूल पाई है । हंसिनी के गर्दन की तरह उसकी लंबी गर्दन । और उसी गर्दन पर उसके बाप ने जोर से थप्पड़ मारे थे । उस दिन से आज भी वह अपनी गर्दन सीधी नहीं रख पाती है । शायद वह हड्डी टेड़ी हो गई । सच में ,मैं हृदय से रोने लगा । लोग भी कितने निष्ठुर हो जाते हैं ! मगर मुझे किसी बात का आश्चर्य नहीं हुआ ,क्योंकि मुझे पता है कि हमारे देश में लड़कियों को कितना नीचा दर्जा दिया जाता है , यहाँ तक कि गाय-बकरी से भी निम्न कोटि की दृष्टि से देखा जाता है । माया अनर्गल कहती जा रही थी अपने ऊपर हुए अत्याचार की कहानी । वह दिखा रही थी ,अपने शरीर पर लगे असंख्य मार के निशान , जले हुए दाग ।
गांव के हर काम में माया माँ के साथ । साल में चार महीने वह गाँव जाती थी ,खेती का काम करने । वहाँ से उसे कुछ पैसे मिल जाते थे, उन पैसों से वह खरीदती थी अपने और अपनी छोटी बहिन के लिए कपड़े,प्रसाधन सामग्री,चांदी की पायल ,हार आदि । फूटी कौड़ी भी अपने पिता को नहीं देती थी ।
सोलह साल के अनुभवों और अनुभूतियों से माया बहुत परिपक्व हो चुकी थी । माया केवल सुंदर ही नहीं ,बुद्धिमान भी थी । जावेद को उसने प्यार करना शुरू कर दिया था । अवश्य , वह उसे कभी-कभार एकांत में मिलती थी । जावेद की छोटी बहन  सोफिया उसके बचपन की सहेली थी । हिन्दू-मुस्लिम विवाह बिलकुल स्वीकार्य नहीं होगा , यह बात दोनों को पता थी । उस पर ये अशिक्षित , कुसंस्कारी किस तरह खून के प्यासे हो सकते हैं , इस बारे में दोनों काफी सचेतन थे । अठारह साल नहीं होने तक माया की शादी भी न्यायसंगत नहीं थी ,मगर तब तक जोर-जबर्दस्ती और किसी अनाकांक्षित व्यक्ति के साथ शादी करना माया को किसी भी प्रकार से ग्राह्य नहीं था । अंत में उसने निश्चय किया छुपकर भाग जाने के लिए ।
 खबर मिलते ही जावेद आ गया । दोनों ने शादी करने की प्रतिज्ञा ली । मगर माया ने कह दिया , वह रजिस्टर्ड शादी ही करेगी । उम्र अठारह से ज्यादा लिखवानी पड़ेगी । उधर माया के परिवार को जावेद के बारे में बिलकुल पता नहीं था और उधर माया के परिवार ने उसकी शादी की तैयारियां शुरू कर दी । माया का बाप एक महीने के लिए गाँव गया था । कुछ जमीन बेचकर माया के लिए गहने तैयार करने । माया के लिए था यह एक अपूर्व सुयोग । माया के ऊपर नजर रखी जा रही थी और उसके लिए कहीं भी निकलना असंभव हो गया था । आधी रात को घर से भागने की सोचकर बिस्तर में सोने का बहाना करते समय सही में उसकी आँख लग जाती थी । एक दिन उसे जावेद आधी रात को ले आया । सारी रात भय और दुश्चिंता में बीती । सुबह वे लोग जावेद की कर्मस्थली भुवनेश्वर पहुंचे ।
जावेद मुसलमान , मगर माया ने धर्मांतरण के लिए मना कर दिया । उन दोनों ने निश्चय किया कि जावेद अपने आपको हिन्दू बना कर उससे शादी करेगा। वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे । धर्म और बड़ी बात बनकर कैसे रुकावट डालता ? सत्रह साल की माया और पच्चीस साल के जावेद को लेकर उसकी विचारधारा मुझे काफी अच्छी लगी । मगर मनुष्य अकेले नहीं रहता है । इन धर्मों की वैषम्य के कारण उनको विभिन्न असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा था । जावेद के मुसलमान सहकर्मी माया को सहजता से ग्रहण नहीं कर पा रहे थे । केवल इसलिए कि वह मुसलमान बनने के लिए विरोध कर रही थी । उन्हें किराए का घर भी मिलने में काफी दिक्कतें आ रही थी । घर के मालिक दोनों धर्मों की परंपरा को ग्रहण नहीं कर पा रहे थे । यहाँ तक कि कभी-कभी जावेद को भी समस्याएँ आती थी । माया के प्रति मेरी ममता जाग उठी ।
अब मैंने उसे कहा दिन भर घर में अकेली रहती हो । चलो, हमारे घर की तरफ घूमकर आ जाना । मन अच्छा लगेगा । माया आती थी , मेरी पत्नी ज्योत्सना उसका बहुत आदर करती थी , हम साथ-साथ खाना खाते थे, लूडो खेलते थे , बातें करते थे । समय किस तरह बीत जाता था , पता नहीं चलता । कुछ दिन बाद हमने अनुभव किया , माया जैसे हम लोगों के प्रति बहुत ज्यादा आकृष्ट हो जाती थी । पंद्रह-सोलह साल से हमारे घर में काम करने वाले कृष्णा ने भी यही बात कही । लड़की अब मन खोलकर बात करती है । उसकी मीठी हंसी की ध्वनि से हमारा निर्जन घर मुखरित हो उठता है । उससे हम बहुत खुश हो जाते थे ।
कभी-कभी ज्योत्सना भी माया के घर घूमने जाती थी । वहाँ से आने के बाद कहती थी , लड़की घर के कामकाज में उस्ताद है । मगर ऐसा लगता है जैसे यह एक खेल-घर है, असंपूर्ण। दोनों बैठकर उसके बारे में आलोचना करते है बहुत समय तक । इच्छा होती है , किस प्रकार उसे एक भरपूर संसार दिया जा सकता है ।
हमें जिस चीज की आशंका थी ,एक दिन वहीं हुआ । माया गर्भवती हुई । पहले वे बहुत खुश हुए । मगर  बाद की गुरुत्व-अवस्था का अनुभव कर आतंकित हो गए । तब तक वे शादी का अच्छी तरह दायित्व समझने में अक्षम थे और उसके ऊपर सांसारिक जीवन की विशाल संभावना प्रश्नवाचक बनकर खड़ी हो गई । जावेद के दोस्तों ने समझाया एबोर्शन करने के लिए । बच्चे पैदा करना कोई खेल का काम नहीं है । मगर माया ने सीधा मना कर दिया । वह भ्रूण-हत्या जैसा महापाप बिलकुल नहीं करेगी । शेष में जावेद ने भी उसकी बात का समर्थन किया ,क्योंकि वह माया को सही माने में गंभीर रूप से प्यार करता था । उन तीन महीनों तक माया बहुत दुर्बल हो गई थी । बहुत दिनों तक वह घर से बाहर भी नहीं निकलती थी ।
मैं कभी-कभी श्रीमती पटनायक को इस कम उम्र वाली दंपत्ति के बारे में बतलाता था । तब तक वह माया के विषय में पूरी तरह अनभिज्ञ थी । श्रीमती पटनायक ने जिद्द पकड़ ली कि उन्हें घर छोड़ने के लिए कहो । उस आउट हाउस में ड्राइवर रहने से  उन्हें सुविधा होगी । असल में माया की निःसहाय और भविष्य में उनसे मदद की आशा कर सकती है , इस भय ने उन्हें यह निष्पत्ति लेने के लिए प्रवृत्त किया था । उस समय नया घर खोजकर स्थानांतरण करना बिलकुल हितकर नहीं था । माया के परिवार की  ओर से मौत का भय खत्म नहीं हुआ था, वास्तव में उनकी बेसिक सेफ़्टी के लिए वही जगह और वही घर सर्वोत्तम था । बहुत कष्ट से मैंने अपने दोस्त को राजी किया , कम से कम ऐसे समय में उनको घर से बाहर निकालने की निर्दयता न करें ।
माया के शयन कक्ष से उनके पड़ोसी के घर का रसोई घर स्पष्ट दिखाई देता था । वहाँ से दिन में चार घंटे महापात्र उनको देखती है । मगर भुवनेश्वर शहर में एक अद्भुत शहरी सभ्यता है । जहां कोई किसी के साथ दो शब्द कहने से पहले दस बार सोचता है । घर के पिछले भाग में चटर्जी का परिवार, मल्ली उनकी नौकरानी , सारे दिन का विवरण अपने मालकिन को बतलाती है, यहाँ तक कि माया के संतान होने की अवस्था । वह जानती है कि माया घर से भागकर प्रेम विवाह कर भुवनेश्वर में रह रही थी । और उसकी जाति-बिरादरी उसकी असुविधा के समय किसी भी प्रकार की मदद के लिए तैयार नहीं । वह तो अपने किए गए कर्मों को वह भोग रही है, कहकर आलोचना करते हुए  मालकिन और नौकरानी की जोड़ी के लिए मदद करना तो दूर की बात का बतंगड़ बना देती थी । पूरे दिन माया अकेली मातृत्व के संपर्क में पूरी तरह अनजान , कुछ भी नहीं खाती थी , एक मुट्ठी भर चावल भी नहीं । स्वाभाविक था , इतनी कम उम्र में शरीर में दुर्बलता का सामना करने के लिए ताकत नहीं बचेगी ।
ज्योत्सना और मैं उसकी समस्या में कुछ ज्यादा ही जुड़ गए थे । प्रारम्भिक स्तर पर मानवीय दृष्टिकोण से ,फिर बाद में वात्सल्य स्नेह से । हमने माया को डॉक्टर के पास लेकर गए । दवाइयों की व्यवस्था कर ली । जावेद उदासीन था ऐसी बात नहीं थी । उसे परिवार चलाना था और उस समय  बहुत आवश्यक युक्तिसंगत था । हमारी सहानुभूति पाकर वह दोनों बहुत आनंदित हो गए थे । उन्हें विश्वास होने लगा कि वे एकदम निराश्रय और अकेले नहीं हैं । माया, जावेद के अल्लाह की उपासना नहीं करती थी । और जावेद ने भी हिन्दू धर्म ग्रहण नहीं किया था । वे अपने समान्तराल विश्वास को लेकर जी रहे थे । इस अद्भुत व्यवस्था के कारण उनके पड़ोसी भी उन्हें सहज रूप से ग्रहण नहीं कर पा रहे थे, यहाँ तक कि उन लोगों के घर में काम करने वाले नौकर और नौकरानी भी  मानो जैसे, धर्म-चेतना मानवीय कर्तव्य-पथ से च्युत हो सकता है !
सही कहा जाए तो उस ब्लॉक की आठ अट्टालिकाओं वाले लोग प्रायः सब-कुछ जानते थे , मगर कोई कभी भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आते थे । मनुष्य की मनुष्य के प्रति सहानुभूति होना जितना स्वाभाविक लगता है , वास्तविक क्षेत्र में मगर इतना नहीं होता है । उसके बाद घर से भाग कर आई अल्पवयस सुंदरी एवं अलग प्रदेश की लड़की , जिसके परिवार के बारे में वे कुछ नहीं जानते है , उसके प्रति श्रद्धा दिखाने के लिए वे लोग क्यों आगे आएंगे ! माया भी क्या मांगती है उनसे ?
अब हमने माया का कुछ-कुछ दायित्व लेना आरंभ किया । जब मैं घर में नहीं रहता था,तो ज्योत्सना हमारे घर की नौकरानी को साथ में लेकर जाती थी । इस दौरान ईस्टर आ गाय था , ज्योत्सना माया  के लिए पीठा और केक लेकर पहुँच गई । माया की होने वाली संतान के लिए कई वर्षों बाद ज्योत्सना के हाथों में ऊन का सिलाई पकड़कर मोजे बुनते देख मुझे बहुत खुशी हुई । ज्योत्सना मानो लड़की की माँ बनकर माया के पास खड़ी थी । कहने से माया के संसार में हमारे जैसा एक छोटा परिवार उसके पिता का घर बन गया था । जावेद हमारे घर आता था, बहुत संतर्पण भाव और कृतज्ञता से भरा । वह कह रहा था , मेरे दोस्त माया को ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं । क्योंकि वे सोच रहे है कि माया धर्म परिवर्तन न कर अपनी स्वेच्छाचारिता का प्रमाण दे रही है । मेरे माँ-बाप ने भी ठीक इसी कारण से मुझे दूर कर दिया है । पहले-पहल इस बहिष्कार से मुझे खूब सारे दिक्कतों का सामना करना पड़ा । हिन्दू धर्म में कोई प्रतिबंध नहीं है , जब से यहाँ आस-पास वालों को पता चला कि माया का पति एक मुसलमान है , तब से ब्राह्मण ने माया के मंदिर जाने पर प्रतिबंध लगा दिए । वास्तव में मानो मैं एक जैसे काफिर , नहीं तो पाकिस्तानी गुप्तचर , या फिर आतंकवादी हैं! हम जैसे खुले वातावरण में सांस लेने के हकदार नहीं हैं ! कितनी घुटन महसूस हो रही थी ।
 मैं जिस समाज में रहता हूँ , वहाँ भले ही धार्मिक अंध-विश्वास को महत्त्व नहीं दिया जाता हो , मगर जिस चीज का अभाव है , वह है मानवता का अभाव । मन के अंदर दूसरों के प्रति घोर अविश्वास एवं कुत्सित भावों के प्रति अहेतुक दुर्बलता । संक्षेप में सभी थोड़े-बहुत स्वार्थी । मैं यीशु की तरह नहीं बन पाऊँगा। वैसा सामर्थ्य भी नहीं , मगर .समवेत प्रार्थना के समय जब सब अपने परिजनों के लिए प्रार्थना करते हैं ,उस समय मैं भगवान से भिक्षा मांगता हूँ माया की सहायता करो । उसका भविष्य कुसुमित हो।
माया के स्वास्थ्य में उन्नति हुई थी, अब वह अच्छे कपड़े पहनती थी, सही तरह से भोजन करने से वह एक स्व्च्छल परिवार के लड़की की तरह दिखाई देती थी । एक हल्के गुलाबी रंग के फूल की तरह । सच में अच्छी तरह जीवन जीने से सब सुखी हो सकते है । माया के एक बेटी हुई बिना किसी जटिलता के । हमने उसकी डिलेवरी के लिए हमारी मेरठ यात्रा को छ महीने के लिए स्थगित कर दिया । इस बीच ज्योत्सना ने उसे बच्ची के लालन-पालन के विषय में बहुत शिक्षा दे चुकी थी । क्योंकि अब उसे दायितत्व खुद लेना पड़ेगा । अकेले-अकेले , केवल जावेद की सहायता से ।
ज्योत्सना ने पूछा, “ माया, तू बेटी का नामकरण-संस्कार करेगी , जैसे हमारे यहाँ हिन्दू घरों में होता है । अगर कहोगी तो ब्राह्मण आदि की व्यवस्था कर देंगे।
माया कुछ समय चुप रहकर कहने लगी, “ हम सही में यही बात सोच रहे थे । जावेद के धर्म में बच्चे के जन्मने के बाद वैसी कुछ खास व्यवस्था नहीं है , फिर भी चालीस दिनों के बाद नामकरण उत्सव होता है । बेटी का नाम ज़ीनत रखने की जावेद की इच्छा है । मगर मैं पता नहीं क्यों उसे मान नहीं पा रही हूँ। क्या मेरी बेटी हिन्दू धर्म के अनुसार बड़ी होगी तो क्या समाज उसे स्वीकार कर पाएगा ? और मैं जावेद को भी बहुत प्यार करती हूँ । इसलिए हम इतने कम दिनों में अपने-अपने धर्म के प्रति विमुख हो गए । मेरा मंदिर में प्रवेश निषेध , जावेद के सम्प्रदाय में मुझे लेकर असंतोष । आप कहिए ईसाई धर्म में क्या हमारा स्थान रह पाएगा ? सारे धर्मों में तो ईश्वर है । फिर आपके ईश्वर हमें बहुत दयालु लग रहे है । इसलिए तो आप अब तक हमारे अच्छे-बुरे समय में हमारे साथ खड़े रहे । आपके जाने के बाद कम से कम हम आपके चर्च जा सके , जहां आपकी तरह मनुष्य रहते होंगे, जो मनुष्यता को अग्राधिकार देते हैं।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखता रहा । माया जो बात इतने सरल भाव से कह रही है , वह क्या इतनी साधारण घटना है? वर्तमान का संसार कितना कष्टदायक है, वह यह बात नहीं जानती है । नहीं तो धर्मांतरणअथवा धर्म-परिवर्तन”  इत्यादि शब्दों को लेकर किस तरह खून बहता है , यह बात जरूर उसे पता होता । हमें दो दिन के बाद मेरठ जाना था , इसलिए मैंने कहा , “ कुछ दोस्तों के और पास्टर के पते देकर जा रहा हूँ , दिक्कत होने से संपर्क करना । ईश्वर करुणामय है , सब मंगल होगा।”   
 
  
 
















Comments

Popular posts from this blog

बोझ

दर्पण में पद्मिनी

सबुज संतक