कोलाज

कोलाज
 
ग्यारह महीने तक मोबाइल पर बातचीत करने के बाद अंत में हमने काफ़े काफी हाउस में बैठकर कापसीनों काफी मँगवाई थी । तीन दिन तक लगातार रिम-झिम बारिश हो रही थी । रास्ते पर चलने वाले लोगों की संख्या ज्यादा नहीं थी । जिंदगी को जीने के लिए एक और मौका देने के लिए मैंने  भी सचेतन रूप से सोचना शुरू कर दिया था। समाज में उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी । देखने में सौम्य मानो अभी भी नजर लग जाएगी ।  हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण और सालों-साल व्हिस्की पीने के अभ्यास से उनकी आवाज बहुत आकर्षक और नरम हो गई थी। मैं उन्हें अनेक बार देख चुका था । मगर वे  मुझे एक बार भी देख नहीं पाए थे । अभी वह सेवा निवृत और एक नाम ज्यादा बहु राष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत । एक लिमोस कारमुफ्त टेलीफोन के अतिरिक्त वार्षिक वेतन पंद्रह लाख रुपए । और अपार अधिकार ।
मेरे साथ उनका परिचय एकदम आकस्मिक ।  किसी ने उनको मेरी किसी खासियत के बारे में बताया था और उन्होंने मुझे पहली बार फोन किया था । पहले-पहले मेरी तरफ से बातचीत औपचारिक होते हुए भी उनकी तरफ से ही बात आगे बढ़ी थी। किसी नारी को जो अच्छा लगता है , उस विषय में उनका प्रकांड ज्ञान था,ऐसा मुझे लग रहा था। भले ही, उन्होंने कभी कोई मूल्यवान उपहार नहीं भेजा था । लेकिन मुझे लग रहा था कि  मेरे मन की परतों को पार करते क्रमशः अंतर में अपना स्थान बनाने में सफ़ल हो रहे थे ।
वे मुझे जीवन को इतनी गंभीरता से नहीं, बल्कि खुशी से बिताने के लिए बार-बार उपदेश देते थे  । अगर इंसान अच्छा खाएगा,अच्छा पहनेगा  और अगर खुद खुश रहेगा तो बहुत कुछ कर सकेगा । कभी भी सीधे तरीके से उन्होंने शारीरिक संबंध के बारे में उल्लेख नहीं किया था, फ़िर भी मैं मन-ही मन मैं अपने आपको मुकलित करने जैसा महसूस कर रही थी । मैंने उनको बहुत बार देखा था । बासठ साल की उम्र में भी वे तेजस्वी चेहरे के अधिकारी थे और हर समय उनके चेहरे पर एक मधुर मुस्कान छाई हुई रहती थी , जिसके कारण मैं उनकी तरफ बहुत आकृष्ट हो रही थी । वे अपने वस्त्रों पर बहुत ध्यान देते थे । महंगे कपड़े उन्हें खूब जँचते  थे । बिना रिम के  चश्मे में वे और ज्यादा बुद्धिदीप्त नजर आ रहे थे । इस तरह के एक सज्जन आदमी मेरे साथ यो हीं घंटेघंटे तक बात करेंगे , किसी को विश्वास होगा ?
 
मैं पूरी तरह से उनके विपरीत थी । स्वभाव में बहुत शर्मीली, इतने दिनों तक बातचीत करने के बाद भी अपने विषय में ज्यादा कुछ नहीं बोल पा रही थी । या तो  केवल काम के बारे में ,या फिर  देश विदेश की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के बारे में चर्चा होती थी ।  इस बीच, मैं उनके बारे में बहुत कुछ जान चुकी थी एक सफल मनुष्य के सफलता की कहानी । कभी-कभी संदेह होने लगता था कि इतना बड़ा आदमी मुझे क्यों पसंद करता हैंमुझे क्यों मिलना चाहता है , क्यों मुझे फोन करता है। इन सवालों का उत्तर नहीं मिलने के कारण बहुत बार उनके नजदीक जाकर भी अपना परिचय नहीं देती थी ।
ग्यारह महीने कुछ कम नहीं थे । बासठ साल के सज्जन व्यक्ति को एक पितृ स्थानीय व्यक्ति के रूप में सम्मान देना सीखा था मैंने । मेरी अब बयालीस साल उम्र ,मगर मैंने शादी नहीं की, वह आदमी मुझसे बीस साल उम्र में बड़ा था मगर कितना बंधु-प्रीतम व्यवहार था उनका !  बदलते समय में उम्र को लेकर ज्यादा चिंता करना संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है । यह बात परोक्ष रूप से मुझे कहते आ रहे थे । जीवन के सुख-दुःख का गहरा अनुभव है ,यही सोचकर मुझे उनकी सलाह अच्छी लगती थी । उन्होंने खुद बताया था कि उनका प्रेम विवाह हुआ था और उनके दो पुत्र फिलहाल अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर । कुल मिलाकर वे सुखी थे ।
अचानक एक दिन उन्होंने कहा, “ तुम्हारे साथ क्या कभी मुलाकात नहीं हो पाएगी? तुम क्या पत्थर की मूरत हो?”  मैं पूरी तरह से अप्रस्तुत हो गई । सच में , मैं क्यों उनके सामने नहीं जा पा रही हूँ ? क्यों उनसे  मुलाकात नहीं कर पा रही हूँ ? यूं ही मैंने कहा, “ क्या मिलना बहुत जरूरी है ? दोस्त की तरह हम एक दूसरे से बातचीत तो कर रहे हैं। ऐसे भी हमारा मिलना इतना सहज नहीं हैक्या आप मेरे दोस्त है , यह किसी को कह पाऊँगी ? और आपके साथ मेरा कोई व्यावसायिक संबंध भी तो नहीं । बस ऐसे ही रहने दीजिए ।"
 वास्तव में व्यक्तिगत तौर पर मैं उनसे मुलाकात करने का साहस नहीं कर पा रहा थी ।  समाज की बदलती संस्कृति में साठ साल के अतिक्रांत बुजुर्ग आदमी के साथ तरुण युवतियों की दोस्ती और मिलना-जुलना इतना व्यापक हो गया है कि प्रत्येक पुरुष मेरे लिए संदिग्ध अजगर से कम नहीं लगता है  । आजकल हम दोनों उम्र के लोग बड़ी आसानी से एक-दूसरे से मिलते हैं , किसी को भी कष्ट नहीं होता । दोनों ही ऐसे संबंध से फायदा उठाते है ।
उम्र के इस पड़ाव पर पुरुष अधिकतर स्थितप्रज्ञ होते हैं मानसिक स्तर पर, आर्थिक स्तर पर भी स्वच्छल वे सब , नहीं होने पर भी स्वयं उच्च-स्तरीय सम्बन्धों के द्वारा सब कुछ आसानी से हासिल कर सकते हैं । इस तरह के अनेक उदाहरण मेरे पास थे कि कम उम्र की लड़कियां बहुत ज्यादा उस आर्थिक स्वच्छलता का लाभ उठाती है । योग्यता  सामान्य लेकिन असामान्य आर्थिक सफलता । आजकल एक और माध्यम का प्रचलन है , वह है अपनी स्वयं-सेवी संस्था का निर्माण , जिससे सहज आमदनी हो जाती है । प्रेम नहीं इसलिए संकोच नहीं, यंत्रणा नहीं और विवेचना भी नहीं । मैं इस तरह की किसी भी केटेगरी में खाप नहीं खा पा रही थी । किसी भी प्रकार की आशा या कमजोरी मेरे अंदर नहीं थी । मेरे पास जो कुछ था , उसके साथ और एक संबल जुड़ जाता था, वह था मेरा विवेक और आत्म-मर्यादा । मैं आसानी से हासिल होने वाली नारी नहीं थी । इस कारण अनेक न्यायोचित अधिकार मिलने से भी वंचित रह रही थी । वे हमेशा मेरी तारीफ करते हुए कह रहे थे, “ जिस किसी चीज की जरूरत हो मुझे कहना । मैं तुम्हारी सेवा में हाजिर हूं ।
अचानक एक दिन ऐसा लगा कि वह वास्तव में दूसरे लोगों की तरह नहीं है । सच में उन्हें मुझसे प्यार है । इस वजह से मैंने उनके साथ अपने व्यवहार में मधुरता लाने की कोशिश की । उनको उनके काम के बारे में ,परिवार के बारे में ,मन के बारे में कुछ कुछ सवाल करने में पीछे नहीं हटी । सही मायने में, मैं उन्हें अपने साथ और अधिक सहज होने के लिए प्रश्रय दे रही थी । मैंने निःसंकोच अपने अधगड़े प्रेम के बारे में उन्हें बता दिया । उन्होंने मुझे बहुत सारी महिलाओं के बारे में कहना प्रारम्भ किया । उनके कहने का अर्थ था कि उनके साथ शारीरिक संबंध थे । उन सारे सम्बन्धों को उन्होने कतई महत्त्व नहीं दिया । मानो आधुनिक उच्चवर्गीय समाज में सब चलता है , ठीक वैसे ही नारी पुरुष का आकर्षण और मिलन भी स्वच्छंदता का प्रतीक है ।    
उनकी जान पहचान वाली अधिकतर महिलाएं रूपवती और उच्चपदस्थ सरकारी अधिकारियों की पत्नियाँ थी । दोनों जानते हैं , ये सारे संबंध क्षणिक होते हैं । इसलिए किसी भी प्रकार की विवादास्पद परिस्थिति बिलकुल पैदा नहीं होती थी । ऐसे वे नारियां अपनी गुप्त कहानी को बंधुत्व के वलय में बांध देती थी । पुरुष के लिए सब कुछ सहज हो जाता था और उन तरुणियों को सीधी आर्थिक सहायता जो आराम से मिल जाती थी उन वयस्क चतुर पुरुषों के पास । वे सारी बातें मुझे इतने प्रांजल भाव से समझा रहे थे कि मैंने भी उन सारी घटनाओं को सहज साधारण मानना आरंभ कर दिया ।
लगभग एक महीना बीतने के बाद मैंने उनसे सीधा सवाल किया, “ आपने तो प्रेम-विवाह किया था । फिर इतनी सारी महिलाओं की आवश्यकता क्यों पड़ी ?”
उन्होंने कहा , “ मैं तुम्हें बताऊंगा । मगर इसके लिए हमें मिलना पड़ेगा।”
उनके परिवार में मेरी कुछ भी भूमिका न होने के बावजूद मैं किस तरह बिना रीढ़ की हड्डी वाले प्राणी की तरह जड़ित हो गई थी देखो तो ! उस ईप्सित समय में अनेक प्रयोजनीय आक्षेप के कारण हमारा इस तरह सार्वजनिक स्थान पर मिलना-जुलना उचित नहीं होगा । मुझे अपनी मर्यादा का ख्याल रखना होगा क्योंकि उनकी तरह मेरे सौ प्रेमी नहीं थे और परिचित प्रेमी की अंतिम मुलाकात की यादें भी अब निष्प्रभ हो चुकी थी ।
अंत में शहर की एक परिछिन्न काफ़ेकपि डे रेस्टोरेन्ट में हमारी मुलाकात का कार्यक्रम बना । हमने सोचा था कि ऐसी जगह पर साठ रुपए देकर एक कप कॉफी पीने के लिए कोई नहीं आएगा । मगर शाम को वहाँ लड़के लड़कियों की अच्छी खासी भीड़ जुड़ती है । या तो आधुनिक हिन्दी गाने ,या फिर विदेशी पॉप गाने बहुत तेज आवाज में बजते हैं । जिसकी धुन पर नाचने लगते थे सारे लड़के-लड़कियां । उस समय एक गाना बज रहा था, “ किस मी प्लीज,किस मी लाइक लवर .....। पास के टेबल पर दो जन बैठे हुए थे । शायद कॉलेज के छात्र होंगे । लड़का लड़की को खिला रहा था ।
वे मुझे कहने लगे ये लोग सोच रहे होंगे , देखो, बूढ़े-बूढ़े लोग भी आए हैं यहाँ ....!.
सच में मानो यह एक लवर पॉइंट हो । काँच के दूसरी तरफ रास्ते के किनारे बैंगनी रंग के फूलों में जैसे एक दबा हुआ अनुभव
मैंने पूछा , “ आपने प्रेम-विवाह किया था न ? उस समय तो इस तरह के केफे कॉफी डे नहीं थे किस तरह से आपकी मुलाकातें संभव हो रही थी?”
उस समय ऐसा माहौल भी नहीं था । लड़की तो क्या लड़के भी खुल्लम-खुल्ला बातचीत करने में संकोच अनुभव करते थे । आजकल बाहरी संस्कृति हमारी संस्कृति में घुल मिल गई है । इसलिए पार्क में , केफे में प्रेम का इजहार करना बहुत आसान हो गया है ....।
उनकी बात को बीच में रोकते हुए मैंने कहा, “ आप बताइए तो , प्रेम-विवाह करने वाला आदमी फिर से दूसरी औरतों के प्रति क्यों आकृष्ट होता है ?”
यह बात सही है कि परिवर्तित समाज के पूरी तरह लागू नहीं होने पर भी कुछ हद तक मैंने एडजस्ट करने का दृढ़ मानस बना लिया था । अन्यथा बीस साल बड़े एक प्रौढ़ भद्र-व्यक्ति को इस तरह के सवाल पूछना किसी धृष्टता से कम नहीं है , यह मैं जानती हूँ । कुछ समय चुप रहने के बाद उन्होंने मेरे लिए मशरूम सेंडविच मंगाया और कहना प्रारम्भ किया, “ यह बात सही है कि मैंने                         प्रेम विवाह किया था , मगर उसके बाद जब तक मुझे पता चला कि मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है , बहुत देर हो चुकी थी । हमारे बड़े बेटे का भी जन्म हो गया था । दरअसल मैं किसी और रूपवती लड़की को प्यार करता था । मगर उससे पहले किसी और से प्रेम विवाह के लिए राजी नहीं हुआ था , यह पता लगने पर उन्होंने मुझे अस्वीकार कर दिया । मेरी दुनिया में उस समय विफलता जैसे कोई शब्द नहीं था । मैंने उस ही दिन किसी भी तरह मेरी भावी पत्नी से मिलने का निश्चय किया । दर असल उसे प्यार नहीं करता था और केवल प्रेम के अभिनय का ढोंग किया था । बाद में यह बात वह समझ गई थी । उसका और मेरा जीवन एकदम अलग-अलग था । मैं हंसमुख और बहिर्मुखी स्वभाव का था और वह एकदम अपने-आप में रहने वाली अंतर्मुखी और न्यूरोटीक कहा जा सकता है । हमारी दूसरी औलाद भी हो गई और मेरे जीवन में अनेक महिलाएं आने लगी । मेरे मन के भीतर के अपराध-बोध को कम करने के लिए मैं उसे खूब सुख-सुविधा से रखता था । साड़ी और गहनों की भरमार लगा देता था ।  मगर वह निस्पृह । हमारे बीच में एक बड़ा व्यवधान , जो कभी भी भर नहीं सकता ।
मेरा मन बहुत संवेदनशील हो गया था , इच्छा हो रही थी कि हाथ बढ़ाकर उन्हें दिलासा देते हुए कहूँ , “ नहीं, नहीं , ईश्वर भी जानते है कि आप भी खुश रहने के अधिकारी है , केवल आपका सुख दूसरों का अमंगल न करें ....
इसी दौरान मेरे मन में उनके लिए प्यार भर उठा था । शायद उसके बाद अगर वह सीधे प्रेम का प्रस्ताव रखेंगे तो मैं बिना किसी दुविधा के उन्हें ग्रहण करूंगी, सोच रही थी । वास्तव में एक स्वावलंबी नारी के लिए प्रेम को छोड़कर और महत्त्वपूर्ण कुछ नहीं होता । प्रेम की हर तरह की  शास्त्रीय उपमा मेरे मन के अंदर तरंगित हो रही थी । मुझे विश्वास था कि वह ही मेरे महत्त्व को समझते हैं । नहीं तो इतनी सहजता से जपने जीवन की सारी बातें कह पाते ?
कापसीनों काफी की खुशबू अच्छी लगने लगी । कॉफी पीना प्रारम्भ करते समय हमने देखा कि काँच के उस तरफ से एक अत्याधुनिक कॉलेज की लड़की और शायद मध्यम वर्गीय  परिवार का छात्र ऑटो-रिक्शा से उतरकर भीतर आए । साढ़े पाँच फूट ऊंची गोरी और पतली लड़की एक टाइट नीले कमीज के साथ चिपकती जींस पहनी हुई थी । और लड़के की ढीली पोशाक और कंधे पर बड़ा बैग । लड़की से वह ठिगना था ।
मेरे भावी प्रेमी की निगाहें बार बार उनकी तरफ जाकर अटक रही थी । हमारी गंभीरतापूर्वक बातें करने का मोड़ एक ही पल में बदल गया ।  वह मुझे दिखाकर कहने लगा, “ यह लड़की बहुत स्मार्ट है । यहाँ आने के लिए लड़के को बकरा बनाई हैं । कल शायद किसी और की मोटर-साइकिल पर पहुंचेगी।”
मैंने कहा , “ ऐसा क्यों कह रहे हो ? शायद एक दूसरे को प्रेम करते हो ........
मेरी बात को अधूरा रख वह अवज्ञापूर्वक कहने लगे , “ असंभव । ये मॉडल जैसी लड़कियां ऐसे ही लाइफ एंजॉय करती है । और क्या तुम्हारी तरह ? जिसे देखने के लिए ग्यारह महीने इंतजार करना पड़ता है और एक किस के लिए कम से कम छः महीने ... ?
यह आक्षेप मुझे अच्छा नहीं लग रहा था । उनका दूसरी तरफ नजर डालना भी मुझे हैरत में डाल रहा था , क्योंकि लड़की की उम्र सत्रह-अठारह से बिलकुल ज्यादा नहीं लग रही थी । और मेरे मित्र जिनकी उम्र साठ साल पार कर चुकी थी, क्या वे इस बात को भूल गए थे ? बहुत कष्ट से मैंने स्वयं को प्रस्तुत किया था ।
वह कहने लगे, “ आजकल लड़की पाना बहुत आसान है । कैरियर के लिए वे कुछ भी कर सकती है । मेरे ऑफिस में भी ऐसी लड़कियों की कमी नहीं है । इतनी चालाक कि कब तुम्हें परेशानी में डाल देंगी, पता ही नहीं चलेगा ... ये लोग अच्छे हैं । आज हैं , कल देखकर नहीं पहचानेंगे।
बात पूरी तरह से एक अलग दिशा की ओर रुख कर रही थी । इस चीज को मैं अनुभव कर रही थी । कहाँ गायब हो जा रही थी इतने दिनों की वह मधुर आकांक्षा,विश्वास,मृदु सिहरन ।
मैंने कॉफी पीते हुए कहा, “ उन्हें छोड़िए न , वे तो यंग हैं।
अचानक उन्होंने कहा, “ मेरे साथ शर्त रखोगी , दो दिन के अंदर-अंदर वह खुशी से मेरी लिमोसे कार के भीतर आ जाएगी ।
इस अप्रत्याशित घटना के लिए मैं हतप्रभ रह गई । वातावरण को नॉर्मल करने के लिए मैं सिर्फ मुस्करा दी । सच में, मानो मैं बिलकुल विव्रत नहीं हुई थी । अंदर ही अंदर पैदा हुए प्रेम की रंगीन दुनिया मानो एक ही पलक में टूटकर चूर-चूर हो गई हो । यह मेरी उनके साथ की अंतिम मुलाकात है , यह बात मैंने अच्छी तरह से हृदयंगम कर लिया था। भाग्य को बहुत-बहुत धन्यवाद दे रही थी कि चक्रवात में फँसने से पहले ही मैं बच गई थी । सुप्रतिष्ठित,वयस्क धनवान लोग महिलाओं को किस दृष्टि से देखते हैं, मैं समझ गई थी । बिल बहुत ज्यादा नहीं था, मगर ऐसे आदमी से एक रुपए का पानी पीना भी मुझे मंजूर नहीं था । अचानक उठकर मैंने उस बिल को चुकता कर दिया और उसके अपमानित चेहरे की ओर देखने की भी इच्छा नहीं की
हम बाहर आ गए । उन्होंने काँच के अंदर लड़की को ओर एक बार नजर घुमाकर देखा और कहने लगे , कितनी मिसफिट जोड़ी है यह वास्तव में।”
मैंने अचानक कहा, अब मुझे जाना होगा।” और मैं साथ ही साथ आ रहे एक ऑटो-रिक्शा को रोककर उसमें बैठ गई । वह मुझसे कह रहे थे, “ मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।
मैंने थैंक्सकहते हुए हाथ हिलाकर विदा ली ।
उन्होंने कहा , “ सी यू अगेन !
मैंने भद्रता से सिर हिलाया और तक्ष्णात मेरे मोबाइल से उनका नंबर हमेशा के डिलीट कर दिया 

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