हैरी साहब
हैरी साहब
बड़ा दिन ।
जटनी शहर के पुराने सारे घर सज उठते हैं इस दिन । पुरानी कोठी और अँग्रेजी ढांचे
में सजे घरों में और गोरे साहब लोग नहीं है । मगर एंग्लो-इंडियन अभी भी कितने रह गए हैं किंवदंती बनकर । सौ साल पहले
यह शहर जंगलों से भरा हुआ एक छोटा-सो गाँव था । मुंबई से चेन्नई को रेलपथ से जोड़ते
समय जटनी को डिवीजन हेडक्वार्टर बनाया गया । नाम रखा गया खुर्दा रोड ।
गोरे साहब
सब ऑफिसर बनकर आए । उनके लिए तैयार की गई बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ । प्रशस्त बरामदे ,लकड़ी की जालियाँ और अन्य साज-सज्जा के साथ जरूरी था
एक सुंदर बगीचा । साहब लोगों को अजस्र वेतन मिलता था । ठाटबाट में कोई कमी नहीं थी
। कहते है उस समय चार हजार गोरे लोग यहाँ रहते थे । अब चालीस परिवार के लगभग केवल
रह गए है । बड़ा दिन उनके लिए वर्ष का सबसे अधिक आनंद का दिन । घर की सफाई की जाती
है ,रंग लगाया जाता है । केक,पुडिंग,रोज-केक की खुशबू से उनकी गली महक उठती है ।
नाच-गाने का रियाज शुरू हो
जाता है । कपड़े सीने में सभी
व्यस्त हो जाते हैं ।
पुराने
पोस्ट ऑफिस की गली से दायीं तरफ थोड़ी दूर जाने पर दिखाई देती है हैरी साहब की
विशाल अट्टालिका । कितने साल हो गए इस विशाल प्रासाद में उजाला नहीं हुआ । खतपतवार , घास-फूस ,जंगली पौधों और लताओं से भर गया है घर । घर के
दरवाजे ,खिड़की सब कहीं गायब हो गए है
। आँगन में दीमक लग गया है बहुत दिन से । दो मंजिला घर पूरी तरह सुनसान । न है
वहाँ पुरानी ठानी , और न ही है हैरी साहब का वह गुलाबी बगीचा ।
बड़ा दिन
नजदीक होने पर हैरी साहब की याद आती है । दिसंबर की ठिठुरन भरी सर्दी में जब हम
दरवाजा खिड़की बंद कर बैठ जाते है , फांक के अंदर से महक आती थी हैरी साहब के पोर्टिको
में लगे हेना –फूलों की खुशबू । शीत रात
सुगंधमय । सुगंध आने लगती थी हैरी साहब के दामी विदेशी इत्र की । ड्राइंग-रूम के
कीमती लाल मसलीन लगे सोफ़े में बैठकर वह क्लासिक अँग्रेजी गाने सुना करते है । हाथ
में सुरापात्र पकड़ कर अकेले-अकेले नाचते है ।
उसके बाद एक हफ्ते
के लिए उनके घर में ताला झूलता है । बड़ा दिन मनाने के लिए हैरी साहब कोलकाता जाते
है । जटनी में रेलवे नौकरी से मिलने वाले मोटे पगार को छोडकर उनका और कुछ भी
आकर्षण नहीं । कोई नहीं है ।
दो बड़े-बड़े
सूटकेस पकड़कर वह ईसाई महीने के अंतिम सप्ताह में बाहर चले जाते है । उसी में रहता
था उनका एक साल का संचित अर्थ । अनेक कीमती उपहार सामग्री और नए-नए शर्ट,पेंट ,कोट, टाई और महंगे चुरट । हैरी साहब कोलकाता के नामी होटल
में, क्लबों में अय्याशी
करते हैं । पैसा उड़ाते है और जीवन का पूर्ण रूप से उपभोग करते है । सत्तर साल का
प्रोढ – मगर उम्र मानो उन्हें छू तक
नहीं पाई है । रंगीन तितली की तरह वे उड़ रहे है इस फूल से उस फूल पर .... ।
हैरी साहब
का बगीचा मेरे लिए सबसे ज्यादा आकर्षक था । वहाँ अनेक विदेशी पेड़-पौधे । चमकते लाल रंग के संतरे सब पककर गिरते है । किसी को लेने के लिए साहस नहीं
। भूत-बंगले की तरह, देखने से डर लगता है । कुंडी लगे लोहे
का गेट खोलकर भीतर घुसने का तो सवाल ही नहीं उठता । दो हृष्ट-पुष्ट डोवरमेन
इधर-उधर घूमते थे कि दिन में भी कोई उनके घर जाने से डरेगा ।
हैरी साहब
के कोठी के पास एक तरफ एंगलों-इंडियन परिवार और दूसरी तरफ
सारे रेलवे के सरकारी क्वार्टर , जिसमें मुझे रहना पड़ा था । मेरी छोटी बेटी ने उन लाल
संतरों को लाने की जिद्द की तो आगत्य हैरी साहब
के घर अंदर जाना
पड़ा । मैंने गेट के पास खड़ा
होकर दरवाजा खटखटाया। सुदृश्य दो
मंजिली कोठी के ऊपरी बरामदे से हैरी साहब ने इशारा किया , “ अंदर आओ।”
तब हैरी
साहब की उम्र होगी सत्तर साल से ऊपर , मगर स्वास्थ्य में कोई विशेष दुर्बलता दिखाई नहीं देती थी । दो हृष्ट-पृष्ट कुत्ते
हिरण कि तरह शांत दिख रहे थे । वह मुझे एक-एक कर सारे पेड़ दिखाने लगे । ज़्यादातर
पेड़ कोलकाता से खरीदकर लाए थे और बहुत सारे विदेश से भी । उनके महल के हर चीज की एक कहानी । उस दिन के बाद लगभग मैं हमेशा
लाल संतरे लाने जाती हूँ , शायद हैरी साहब को ज्यादा जानने के लिए ।
हैरी साहब
कुछ दिन उपरांत ऊपर के बरामदे में लंबी आर्म चेयर में देखने को
नहीं मिले । एक दिन साहस करके मैं भीतर गई , कुत्ते परिचित थे ,इसलिए किसी प्रकार का अवरोध नहीं किया । घर अंदर से
बंद था । कुछ समय बाद हैरी साहब ने आकर दरवाजा खोला । तब वे बहुत दुर्बल
दिखाई दे रहे थे । ड्राइंग-रूम के कीमती सोफ़े पर बैठकर उन्होने मुझे बैठने के लिए
कहा । घर की अंदरूनी सजावट बहुत सुंदर थी । दीवार पर टंगे हिरनी और सांभर के सिंग
बहुत सुंदर दिखाई दे रहे थे । बंदूक के साथ लटकती छोटी तलवार भी सजावट का एक
हिस्सा । और उसके नीचे एक विशाल महाबली रॉयल बंगाल टाइगर की खाल ।
उस समय आस-पास के जंगलों में बाघ,हाथी,हिरण विचरण करते थे । और शिखर पर जाना भी साहब का प्रमुख आमोद था । मगर सोफा, कारपेट और
शौक की सारी वस्तुओं पर बहुत धूल जम गई थी । अनेक दिनों
से किसी ने झाड़ू-पोछा नहीं किया था ।
धीरे-धीरे
हैरी साहब ने मुझे पूरी कोठी घूम कर दिखाई । सबसे सुंदर था उनका शयन-कक्ष । सारी
दीवारों पर अति सुंदर पेंटिंग ,एक कोने में बहुत कीमती सजावट के उपकरण , बिस्तर पर कोमल मखमली गद्दे के साथ लेस लगे हुए
विदेशी चादर और तकिये । सब जगह गुलाबी रंग की आभा और एक ग्रामोफोन रिकार्ड के साथ
बहुत सारी पाश्चात्य संगीत की कैसेट्स । दीवारों के बाकी हिस्सों में
ग्लास-फिटिंग्स । अभिजात्य से भरपूर यह कमरा उनका सबसे प्रिय । कारण इस कमरे में
शारीरिक भोग-विलास होता है । प्रतिदिन नया चेहरा , नई स्टाइल में । उन्हें हैरी साहब बहुत उपहार देते
थे । कीमती परफ्यूम ,कीमती पेय-पदार्थ और देश-विदेश से लाए कीमती उपहार
के लोभ से बहुत सारे लड़कियां उनके पास स्वतः: आ रही थी। इसलिए
सत्तर साल अतिक्रम करने के बाद भी उनकी अय्याशी में कोई कमी नहीं थी ।
उनके घर के
सामने रास्ते के दूसरी तरफ एक लड़की रहती थी । अट्ठारह साल की । नाम था उसका “डॉल” । यह डॉल बार-बार हैरी साहब के घर आती है । हैरी
साहब का आदर-सत्कार करने की आड़ में लूट करती है । डॉल की पड़ोसन रोज उसकी हमउम्र और
उससे ज्यादा सुंदर । उसकी आवाज भी बहुत मधुर थी । रोज भी डॉल के देखा-देखी हैरी
साहब के घर आने लगी । केक ,पावरोटी खरीदकर लाती थी ,घर साफ-सुथरा करती थी और हैरी सहबके उपहार आदर से
ग्रहण करती थी । धीरे-धीरे रोज और डॉल के बीच तेज झगड़ा होने लगा । यह प्यार के
खातिर नहीं हुआ था । हैरी साहब दोनों के इस तरह के व्यवहार के लिए बहुत खुश हो रहे
थे । इस उम्र में भी अठारह वर्षीय लड़कियों के झगड़े ने शायद उनके अहं भाव को जीवित
रखा था । वह यह बात कहने में गर्व अनुभव करते थे ।
इसलिए वह
कभी-कभी एक को घुमाने के लिए कोलकाता ले जाते थे , नहीं तो दार्जिलिंग । उत्तीर्ण वयस में वे उनको औषधि
सही समय पर देगी और देखभाल करेगी । लोग संदेह नहीं करते हैं, क्योंकि हैरी साहब के साथ किसी के साथ ज्यादा
घुलना-मिलना नहीं था । एक सप्ताह की कमाई के क्या कहे ! दो महीने की
आय भी हो जाती थी लड़कियों की ।
धीरे-धीरे
हैरी साहब के शयन-कक्ष से छोटे-छोटे सामान सब गायब होने लगे । हैरी साहब के बंगले में इन दोनों लड़कियों को छोड़कर किसी और का आना-जाना नहीं था । कहने
का अर्थ –दोनों एक एक कर सारा सामान
चोरी कर रही थीं और एक-दूसरे के खिलाफ हैरी साहब को सावधान रही थीं ।
फिर से एक
बार बड़ा दिन आने से पहले मैं एक महीने के लिए दक्षिण
भारत भ्रमण पर चली गई । लौटने के बाद देखा हैरी साहब के
बंगले में नई पेंटिंग नहीं हुई थी। गेट पर
ताला भी नहीं था । अंदर कुत्ते नहीं थे । जाले और धूल जमकर पूरा घर विवर्ण दिखाई
दे रहा था । लोगों के कहा , हैरी साहब की मृत्यु हो गई है । डॉक्टर की
पोस्ट-मार्टेम रिपोर्ट के अनुसार किसी ने उन्हें गला घोंट कर मार दिया है । रोज और
डॉल बहुत ही कम वयस की और इतनी बुरी तरह से रो रही थी कि शक की दृष्टि से उनकी तरफ
देखने का सवाल ही नहीं उठ रहा था । हैरी साहब की मृत्यु एक प्रश्नवाचक बनकर रह गई ।
डॉल और रोज
को गहने ,कीमती कपड़ों में मशगूल देखकर
मुझे संदेह हो गया और दोषियों का स्वत: पता चल गया ।
हैरी साहब
का बंगला अब भूत-बंगला , जिसका कोई दावेदार नहीं है । घर का सारा सामान चोरी
हो गया है । यहाँ तक कि घर के दरवाजें ,खिड़की और चौखट भी नहीं बचा । विशालकाय लकड़ी के बीम सब नीचे गिर गए हैं।
जिनकी सुंदर नक्काशी में दीमक लग गई है । शयन-कक्ष की छत भी गिर गई है । इस घर के
भीतर कोई नहीं आता है , घर भूत-कोठी की तरह दिखता है । अवश्य ,हैरी साहब का भूत अब तक किसी को दिखाई नहीं दिया है
।
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