शर्त


शर्त

झरोखे से दिख रहा था पार्क का एक दृश्य , सुनाई दे रहा था बच्चों की छलहीन कोलाहल । बसंत का निर्मेघ आकाश, पतझड़ से हल्के पौधे, अपराहन के सारे फूल में केवल मिलन का आमंत्रण । उसकी आत्मा एक जादू के ताबीज की तरह आवेग से भरपूर, मगर पूरी तरह एकाकी , जरा-सी अवमानना की ज्वाला लिए वह इधर-उधर घूम रहा था हवा की तरह । अनजान जंगली फ़ूलों की तरह अतीत बिखर गया था । उसके सारे सपने आवेगजड़ित कल्पनाविलास छोड़कर वयस्क हो जाएंगे, क्योंकि अभिसार का आधे से ज्यादा समय अब बीत चुका है प्रेमिका आई है ,मगर बहुत ज्यादा विलंब में ।
मोहन ने फिर से कहा ,  यहाँ आओ,  इतनी ज्यादा भावुक मत बनो, तुम क्यों ऐसे मुँह फ़ुलाकर चुपचाप खड़ी हो तब से ?”
रश्मि ने कुछ उत्तर नहीं दिया।  क्योंकि उसका चेहरा झरोखे की तरफ था , इसलिए उसकी भाव-भंगिमा मोहन को दिखाई नहीं दे रही थी ।
मोहन ने फिर से कहा, “ अभी भी बचपना क्या शोभा देता है ?  कुछ समय के लिए ठीक है ।  मगर हम दोनों व्यस्क हैं , और तुम तो कोई अनपढ़ गंवार लड़की भी नहीं हो ....”
“ शायद मैं अभी भी एक सरल देहाती लड़की .....”
रश्मि ने नहीं कहा,  मैं अनूढ़ा हूँ ,किसी पुरुष के साथ आजतक एक नहीं हुई हूँ ।
रश्मि की बात को रोकते हुए मोहन ने कहा , “मजाक मत करो , सैंट स्टीफन से पास कर तुम एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करती हो । तुम जवान, उच्च-शिक्षिता, सुन्दर और आधुनिक हो .... ये सब कुछ भी कहना पड़ेगा क्या ?”
रश्मि ने उत्तर दिया, “ तो क्या हुआ , यह सब होने के बाद क्या मेरा नारीत्व बचा नहीं रह पाएगा ?
“ तुम इस प्रकार की हास्यास्पद बात क्यों कर रही हो , कहो तो ?  एक पुरुष नारी को सजाएगा कैसे ? मेरी कोई अभिज्ञता नहीं ।“
रश्मि ने कुछ जवाब नहीं दिया,  मगर पहले की तरह अनमनी, एक टोटेम खंबे की तरह खड़ी रही । हल्दी रंग की सिल्क-साड़ी , और माथे पर फूलों का गजरा ।  वह जहाँ पर खड़ी थी वहां से एक इंच भी नहीं खिसकी । अत्यंत रमणीय दिखाई दे रही थी और साथ ही साथ वलनरेबल भी । मोहन की ओर पीठ कर खड़ी रहने में न कोई उसका अहंकार था और न ही धृष्टता ।
“ अच्छी लड़की की तरह मेरे पास आओ , रश्मि , मुझे और अधीर मत करो ....” मोहन ने विनती किया ।

रश्मि का आवाज पहले की तरह स्थिर, कोमल और संभ्रांत था । “  तुम क्यों इतना गुस्सा कर रहे हो ?  मैं तुमसे कुछ माँग रही हूँ ? एक छोटा-सा अनुरोध है केवल.......” 
मोहन : “ इतनी सरल नही हैं वह बात । आदमी लोग ऐसा नहीं करते है । विवाह की पहली रात में भी नहीं । मैं सोच भी नहीं सकता । “
रश्मि नीरव रही । विवाह ? वह विवाह का प्रलोभन क्यों ठुकराती आई है ? क्यों अर्थहीन लगता है उसे यह बंधन ? सच में मानो यह एक ..... मुखरित उत्सव । कीमती साड़ियाँ, गहने सब नए – केवल वर कन्या के ही नहीं , सजातीय परिजनो के भी । उसे याद हैं , उसकी माँ नई साडी और नई जूते खरीदने के बाद ही किसी रिश्तेदार की शादी में जाती थी । अग्नि को साक्षी मानकर एक नारी और पुरुष की जोड़ी को अबाध संभोग का अधिकार । यह सब स्थूलता के लिए समाज स्वीकृति देता है , मगर प्रेम जैसी एक इच्छाधीन और सब सूक्ष्म संबंध में सूक्ष्मता का लेशमात्र भी स्थान नहीं ? रश्मि मौन रही ।
मोहन ने इस बार धीरज खोते हुए कहा , “ तो फिर आई क्यों हो यहाँ ? मुझे इस तरह अपमानित करने के लिए ?”
“ मैंने तुम्हें कब अपमानित किया ?” रश्मि ने विरोध जताया ।
मोहन ने कहा , “ फिर तुम्हारा ऐसा व्यवहार क्यों ? मुझे ऐसा लग रहा है , जैसे मैं किसी एक छोटी लड़की को भगाकर लाया हूँ, केवल अपने सुख के लिए ?”
रश्मि : “ तो ये सब केवल सुख हैं ?”
मोहन : “ ऐसे शब्दों को मत पकड़ो प्लीज । तुम जाकर थोड़ी बुद्धि-विवेक से काम करो । हम दोनों राजी थे, इसलिए आए थे।“
रश्मि: “ मैं भी वही एक उद्देश्य से आई थी।“
मोहन: “ तो फिर ऐसा प्रहसन क्यों ? इतना विभ्रम किसलिए ?”
रश्मि:” मैं एक छोटी-सी अभिव्यक्ति चाहती हूँ।“
मोहन: “ उसके बाद तुम कहोगी , मैं तुम्हारे पैरों में पायल फिर से पहना दूँ । तुम्हारे बालों में पहले जैसा फूलों का गजरा सजा दूँ । तुम्हारे सारे गहने एक एक कर पहना दूँ – कान का, नाक का , अंगूठी का , मणिबंध का ,,,,,,,,वाह ! खूब चमत्कार ।“ इस बार मोहन का स्वर शुष्कता और विद्रूपता से भरा हुआ था ।
रश्मि ने विचलित न होकर कहा , “ हाँ , तुम्हें ये सब करने ही होंगे । “
मोहन का स्वर धीरे धीरे उतप्त होने लगा , “ बंद कर यह सब , रश्मि । “
मोहन चाहता था एक आवरित आनंद का मुहूर्त बिना किसी जटिलता का संबंध । वास्तव में इनिशिएटिव लेने वाली  आधुनिक महिलाओं के साथ वह खुला व सहज था । वह सोचता है कि ऐसे शर्तहीन संबंध से ही केवल शारीरिक और मानसिक तंदरुस्ती सहजता से मिलती है । रश्मि में उसे लेकर कोई रोमांटिक आवेग का सूत्रपात नहीं हुआ तो ? वह क्या उससे शादी करना चाहती है ? यह बात संभव नहीं है ,  अपने परिवार के इच्छा के विरुद्ध कोई काम  करनेवाला नहीं है मोहन ।
“ यह कोई खेल नहीं है । “ रश्मि ने प्रतिवाद किया ।
मोहन : “ हम लोग आनंद लूटाने के लिए आए हैं , उसे इस तरह विरक्ति क्यों पैदा कर रही हो ?”
रश्मि : “ मगर जिंदगी एक लंबी कहानी है , यंत्रणा की .... वास्तविकता की । “
मोहन : “ तुम क्या जान बूझ कर मुझे ऐसे पीड़ा देने आई हो ?
रश्मि : “  तुम्हारी पीड़ा कहाँ ? मैं ही केवल कष्ट पा रही हूँ ?”

  किसी मंदिर में संध्या की आरती की घंटनाद और मादल के स्वर बार-बार प्रतिध्वनित हो रहे थे । सारे भक्तों पर अभिसार के लग्न को भी कमजोर करने जैसी अपार क्षमता थी । चिड़ियाँ अपनी चहचहाहट बंदकर शाम की समवेत प्रार्थना सुनने के लिए तैयार हो रही थी ।
मोहन फ़िर से रश्मि को मनाने की कोशिश करने लगा , हम एक-दूसरे को प्यार करते हैं और हम दोनों बालिग भी है । तुम क्या एक फ्रीजिड वूमेन हो ?”  
रश्मि: “ तुम्हारा ऐसी संदेह किसलिए हुआ ?”
मोहन: “ अन्यथा एक सत्ताईस साल की पूर्णयौवना , उच्च-शिक्षित आधुनिक लड़की ऐसा आचरण क्यों करेगी ?”
रश्मि : “  मगर मैंने ऐसा कुछ ज्यादा मांग लिया है ?”
मोहन :” तुम एक अवास्तविक और अवांतर शर्त रख रही हो ।  मुझे लग रहा है कि रोमांस को लेकर किसी  गलत धारणा ने तुम्हारे मन में घर कर लिया है । कालिदास के जमाने का कोई प्राचीन हास्यास्पद प्रेम और शृंगार के खेल को फ़िर से  तुम नया रूप देना चाहती हो ।“  
रश्मि : “ मेरी इच्छा , बस इतना ही ।“

सारी दीवारें चुपचाप इंतजार कर रही थी देखने के लिए एक बंधनहीन  अंतरंग समय को । न तो उनके कान थे , न जुबान थी निषेध करने के लिए ,अवरोध पैदा करने के लिए या ईंधन डालने के लिए । एक स्पर्शकातर दूरी की नीरवता ।  मुझे दुर्बल मत होने दो।“  मन ही मन प्रार्थना करने लगी रश्मि , मगर कितनी उमंग से दौड़कर आई थी वह खुद ! कितनी व्याकूल थी अपने प्रेमी को मिलने के लिए ! सारी दुनिया से विच्छिन्न कर अपनी बाँहों में पकड़कर रखने के लिए !
मोहन :” क्या तुम ऐसा व्यवहार हमेशा करती हो ?”  
रश्मि :” मुझे प्रोवोक मत करो ।“
मोहन :” असल में तुम ही मुझे उत्यक्त कर रही हो ।  तुम जानती हो, हम लोग ऐसी स्त्रियों को क्या कहते है  ? ककटीजर .....”
रश्मि: ” असभ्य मत बनो ।“
मोहन :” मेरे धीरज की सीमा लांघ हो रही है ।“
रश्मि :” तुम क्या मेरे साथ सभ्य सलूक नहीं कर सकते हो ?”
मोहन :” मैं तुम्हारे साथ बहुत संयम बरत रहा हूँ ।दो घंटे बीत चुके हैं ।  शायद तुम्हारी कोई मानसिक समस्या है । “
रश्मि :” मैं एकदम नार्मल हूँ।“

मोहन:” तो फिर  क्यों आई ? अगर तुम शारीरिक संबंध से नफ़रत करती हो ?”
रश्मि :” मैं तुम्हें प्यार करती हूँ,इसलिए ।“
मोहन :” ठीक । मैं भी यहाँ कोई खलनायक नहीं हूँ , जो तुम्हें निर्वस्त्र करने के लिए , सिड्यूस करने के लिए तत्पर हूँ वैसे भी तुम डेढ़ घंटे विलंब से आई हो ।“

यह देरी रश्मि से जानबूझकर नहीं की थी । हमेशा केजुअल पोशाक में स्वच्छंद ढंग से घूमने वाली जब प्रणय अभिसार में आई है , तो प्रसाधन परिपाटी में कुछ ज्यादा ही लंबा समय लगा देना अस्वाभाविक है क्या ? चेहरे पर इससे ज्यादा प्रलेप पहले क्या लगाया था कभी ? नौकरी के लिए इंटरव्यू के समय भी नहीं । किसी विवाह भोज में भी नहीं ।  साड़ी पहनना कठिन है , इसलिए उसने कभी ध्यान नहीं दिया था उस तरफ । तब गहरी पीसी हुई हल्दी जैसे रंग की साड़ी उसने स्वयं छांट –छाँटकर खरीदी थी । सिर के छोटे-छोटे बालों में बहुत  समय लगा था सजाने के लिए ,उनमें फूल लगाने के लिए । सारे यत्न किए थे उसने एक परिपूर्ण सुंदर अभिसारिका बनने के लिए , क्योंकि वह मोहन  को प्यार करती थी , गहरे भाव से । वह मोहन स्वयं नहीं समझ पाया था सिर्फ उसीके लिए ही  रश्मि की इस व्यापक प्रस्तुति को , उसकी देरी से आने के वास्तविक कारण को ।

मोहन ने अपने उतारे हुए ओवरकोट और शर्ट को पहनना शुरू किया । बाथरूम में उसके फ्रेश होने की कल-कल ध्वनि सुनाई दे रही थी । परफ्यूम स्प्रे कर वह चले जाने के लिए तैयार हुआ । उसने बैरे को ऑर्डर दिया दो कप कॉफी और कुछ बिस्किट लाने के लिए । बाहर में रात, एक अभिसार टूटने की रात, रश्मि की साड़ी,गहने और बेनीफूल सभी अटूट रह गए ।
जूते में लेस बांधते समय खूब विव्रत हो रहा था मोहन ।  जूतों में फीता बांधने जैसा ही है पुरुष का स्पर्श ! सिहर उठी थी रश्मि । एक बार भी उसके नजदीक नहीं आया ? बाहों में नहीं लिया , थोड़ा-सा मनाने ,प्यार करने या तारीफ के कुछ भी लफ्ज नहीं बोला ? कुछ ही नहीं प्रेम को लेकर एक सूक्ष्म स्पर्शकातरता तब क्या रश्मि को अकारण बांधे रखी थी ?
मोहन अब  सम्पूर्ण अपहुंच ,क्रोध और विरक्ति का अवांछित उष्ण शून्यता । वह नहीं जानता  रश्मि का मन , जो अपने पहले प्यार की पुलक में विभोर, शृंगार की सौ उपमा से जिसका हृदय परिपूर्ण । सहवास की मर्यादा को तलाश रही थी वह एक सामयिक मिलन में । रश्मि खड़ी थी पहले की तरह । मोहन अब एक कठोर परिणत पुरुष में रूपांतरित ..... । शायद वह कभी भी परिचित नहीं था रश्मि की भाव-प्रवणता से । बाहर में काफी देर से बसंत का विलम्बित कोहरा जमने लगा था ।  रश्मि ने बेसिन में जाकर धो दिए अपने काजल मिले आँसू ,प्रेमी के होठ लगे बिना लिपस्टिक के दाग और और उसकी सिर्फ एक ही सरल शर्त ।

















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