प्रेम का घर


प्रेम का घर
 
चार दिन से लगातार बारिश हो रही थी। घास-फूस ,दालचीनी और विशालकाय आरकेरिया पेड़ों से घिरा पैंतालीस साल पुराना एक घर ऐतिहासिक युग का प्रतीक । फिर भी मुझे आना पड़ रहा था हर रविवार को । पूरे अगस्त महीने । लोग तो आ रहे थे, मगर घर नीलामी नहीं हो पा रहा था । सबसे ज्यादा विरक्तिकर लग रहा था, इभा त्रिपाठी का बैठा रहना और उसका पूरी तरह से असामाजिक अहंकार  भाव के साथ ।
इभा की उम्र पैंतीस साल है , वहाँ के स्थानीय लोगों ने मुझे बताया था । मगर उसका व्यवहार पचपन साल के अभिजात्य परिवार के सदस्य की तरह शीतल और मालिकपना सुलभ था । जो वास्तव में मुझे परेशान कर देता था । होठों पर गहरा लिपस्टिक , आँखों में दुनिया भर का सूरमा, कानों में दो छोटे-छोटे हरे रंग के पत्थर के कुंडल मानों सैफायर पत्थर के हो । गले में भी ऐसा ही एक पत्थर आँख की पुतली की तरह अंडाकार । उसके शरीर पर इत्र की खुशबू ज्यादा नहीं होने पर भी हर घंटे में छोटे-से आईने से अपने प्रसाधन को सजा लेती थी , फिर से एक बार इत्र डाल देना मुझे अच्छा नहीं लगता था । किसको दिखा रही थी वह ? मैं शादी-शुदा था और उम्र में उससे कम से कम आठ साल छोटा । उस जगह कोई प्रभावशाली या धनवान आदमी नहीं आते थे ।
खाली बैठे बोर लगने लगता है , मगर उस भद्र महिला के आगे न तो कोई किताब पढ़ पाता और न ही सिगरेट का कस ले पाता हूँ। केवल ब्लैक कॉफी उसे अच्छी लगती हैं। मगर जब मैं तीन बार पीता हूँ तो वह एक बार पीती है । जो कुछ उससे पूछा जाता था वह केवल हाँ या ना में उत्तर देती है और वह भी इस तरह मानो मैं कोई बाहरी आदमी हूँ । उसके हाथ में काम्युक का एक पतला-सा उपन्यास था, जिसके पन्नों में वह खुद को छुपाना ज्यादा पसंद करती थी, जिसके कारण मेरा क्रोध उमड़  रहा था । उससे भी ज्यादा अमंगलकारी था उसका मेरी चेयर पर बैठना और मैं एक साधारण आदमी की तरह लकड़ी के पुराने चेयर में बैठा करता था औपचारिकता के खातिर । वह मेरी इज्जत करेगी, न कि मैं उसकी ?
राज्य-सरकार की सेवा में पोस्टिंग मिल जाने से एक साधारण कर्मचारी की भी बहुत इज्जत की  जाती है और  संघ-सरकार की सेवा में तो उसके आगे उस अंचल का धनवान आदमी भी तुच्छ लगने लगता है । मगर पता नहीं क्यों, हम लोग भी एक संभ्रांत , उच्च-शिक्षित परिवार के सामने सिर झुका देते हैं। मगर इभा त्रिपाठी कभी यहाँ पैदा हुई थी , पली-बढ़ी थी, मगर अभी यहाँ नहीं रहती थी । अंततः पिछले  दस सालों से । मुझे इस बंगले का केयर-टेकर कहती थी । इभा एक दशक से यहाँ नहीं आई थी । दीर्घ समय से बिस्तर में पड़े अपने बुजुर्ग पिता से भी मिलने नहीं आई । इभा को याद करते करते उन्होने अपनी आँखें मूँद ली । उसने अपने पिता के लिए कीमती चाकलेट ,कीमती कपड़ा अच्छी-अच्छी किताबें , अच्छे-अच्छे पेन भेजने में कोई कमी नहीं रखी । भले ही ये चीजें कुछ काम की नहीं थी , मगर वृद्ध मालिक की इजाजत के बिना उनको ले जाने की हिम्मत उसकी नहीं थी ।
इतने अविकसित इलाके में कोई क्यों इतना बड़ा बंगला बनाएगा ? ब्रिटिश शैली में बनी विशाल अट्टालिका जिसकी दूसरी मंजिल पर बना हुआ था एक छोटा-सा कमरा । थोड़ा-सा अलग स्टाइल में  है और इसलिए आकर्षक भी । घर की सारी दीवारें बहुत ऊँची ,छत भी खूब ऊँची । दरवाजों में बड़े-बड़े लकड़ी के पट्टे और छह फीट के दरवाजे के ऊपर की जगह में दो फुट ऊंचाई का अर्द्ध-चंद्राकार गोलार्ध में नीले रंगों की पेंटिंग । उन सब से छनकर बाहर का उजाला भीतर आता है और वह रोशनी इतनी शान्तिदायक लगती है कि घर के अंदर रोशनी करने की इच्छा भी नहीं होती है । सच में बिजली की रोशनी में जिस प्रकार की हलचल होती है , ऐसी चाँदनी में बिलकुल नहीं । पैंतालीस साल पहले ये सारे सामान मिलते थे सही में, मगर कटक शहर का एक खानदानी परिवार किस प्रकार बलरामगडी में आकर बस जाएगा, यह बात मन में खटक रही थी ।
मेरी पहली पोस्टिंग भी ऐसे ही छोटी जगह पर हुई थी , मगर उस कलिंग घाटी में आकर्षण था । दीपा बोर हो जाती थी । वह ओड़िया  अवश्य थी , मगर उसका जन्म बिहार में हुआ था । पढ़ाई दिल्ली में । गाँव की गलियाँ उसे अच्छी नहीं लगती थी , उसने स्पष्ट कह दिया था । उसकी इस बात को काटने का कोई उपाय उसके पास नहीं था । उसने मेरी उच्च पदवी देखकर ही शादी की थी और हमारे बीच इस तरह का कोई राजीनामा नहीं हुआ था कि मैं केवल शहर में रहूँगा और हर शाम क्लब या सिनेमा देखने में बीत जाएगी । दीपा की किस्मत खराब थी कि अब मेरी बालेश्वर पोस्टिंग हो गयी थी और पहले वाले बलरामगडी जैसे पिछड़े गाँव के इस बंगले की नीलामी के लिए रहना हुआ । दूसरे रविवार को मैं दीपा को अपने साथ जबर्दस्ती लेकर आया क्योंकि इभा जैसी भद्र महिला को और मैं सहन नहीं कर पा रहा था । दीपा के साथ अंततः समुद्र और नदी के संगम स्थल .तक पैदल चला जा सकता है, यूकेलिप्टस और झाँऊ जंगल की सनसनाती धीमी बातों के बीच दीपा का जलतरंग की तरह अनिश्चित मूड और स्वर मुझे अच्छा लगेगा ।
दीपा को लगा कि वह भद्र महिला वास्तव में बंगला बेचने के चक्कर में बिलकुल नहीं । अन्यथा वह इस तरह का असामाजिक व्यवहार क्यों करती । स्थानीय लोगों की भावना और अनुभूतियों का  ख्याल जरूर रखती । इसके अलावा एक पुरानी कोठी ,जिसे बहुत जल्दी ही समुद्र का ज्वार निगलने को तैयार है , जिसकी कीमत खुद निर्धारित न कर किसी भावी खरीददार पर छोड़ देना कितना तर्क-संगत है ? सच में उसने दबी हुई जुबान में कहा था कि वह वास्तव में उन रुचिहीन लोगों के हाथों अपने पिता के खून-पसीने से तैयार किए गए स्वप्निल महल को नहीं दे सकती , जिस पिता को जीवित अवस्था में वह आकर कभी मिली नहीं थी - उस पिता के बारे में सोचकर जिद पकड़ लेना क्या स्वाभाविक लगता है किसी को ! इभा के आचरण से ऐसा लग रहा था मानो यह बात हम दोनों के बीच में गुप्त रहे ।
तीसरे रविवार को दीपा ने मेरे साथ आने से इंकार कर दिया । उसने कह दिया कि ऐसी बद्तमीज़ औरत के लिए वह एक दिन खराब नहीं करेगी । उन्होने गत बार पाँच रूम उस विशिष्ट प्रासाद को घूमकर देखे थे । ड्राइंग रूम के कोने में पड़े सितार को देखकर मंत्र-मुग्ध होकर खुशी से उससे गीत गाना सिखाने की बात कही थी । खिड़की के सिल पर राधातमाल और उसके पीछे गहरे हरे रंग के आर्ककेरिया की छाया उसे काव्यमय लगी थी , यह कहकर उसने उस घर में रहने वालों की उच्चकोटि की रुचि की तारीफ की थी । अंत में पंक्तिबद्ध क्रोटन और फर्न के पिछवाड़े से उन हरे अलिंद से वे ऊपरी मंजिल पर गए थे । वही था उनका वांटेज पाइंट । वहाँ बैठकर समुद्र और बूढ़ावलंग नदी के संगम स्थल को देखा जा सकता है । देख सकते है-लंगर लगे हुए मछली पकड़ने वाली सारी नौकाएँ एक कतार में । मगर मछली और सुखुआ की दुर्गंध वहाँ तक नहीं पहुँचती थी । वहीं से दीपा ने खोजे थे रात की रानी सेफाली के दो बड़े पेड़ । जिन पर सफ़ेद फूल बहुत अच्छे लग रहे थे और प्रेम के तीर के आघात से बिखर पड़े थे फर्श पर मुट्ठी -मुट्ठी भर शैफाली के फूल । बहुत मेहनत से तैयार की हुई थी यह कोठरी, कोठरी कहना ठीक नहीं होगा । क्योंकि उसकी सारी दीवारें काँच की, और उन काँच पर भी अलग-अलग देशों के फूल खुदे हुए थे। बीच में फीके हरे रंग का एक छोटा-सा अंश आयताकार मार्बल लगा हुआ था । जिस पर खोदे हुए थे पर्सियान फूल और पत्तों के निशान ।
दीपा सोचने लगी, शायद यही उसके बैठने के लिए सबसे उत्तम जगह है ।  मेरी अनुपस्थिति में वह गाना गा सकती है । उसे अच्छा लगा काँच का रंग और मार्बल की अमीमांसित ज्यामिति । उसे इतना अच्छा लगा कि उसने मन-ही मन ठान लिया कि यह घर खरीदा जा सकता है । क्योंकि नीलामी की बोली बोलने वाले लोग कोई भी उसे पचास हजार से ज्यादा देने के लिए नहीं थे । जिस के ज्यादा दिन नहीं बचे हो, उसकी कीमत कौन समझ पाएगा ? मगर दीपा को लगा कि यहाँ समुद्र पहुँचने के लिए कम से कम पचास साल और लगेंगे । इसलिए उसे खरीदना कोई खराब सौदा नहीं होगा । यह बात उसने इभा को जिस समय बताई , वह सुन नहीं पाई । वह समुद्र और नदी के संगम की ओर  देख रही थी ,वह एक कम ऊंचाई की दीवार पर झुककर खड़ी थी,वह बड़ी असहाय दिख रही थी,दीपा सचमुच में डर गई थी।  
 मन को भुलाने के लिए वह जाकर फीके हरे चबूतरे पर जाकर बैठ गई और किसी गाने को गुनगुनाने लगी । उसका गाना सुनकार इभा का ध्यान भंग हो गया और वह शेरनी की तरह दहाड़ते हुए दीपा को खींच लाई , " यहाँ आना मना है । तुम इसे कभी भी मत छूना।"
दीपा इस अप्रस्तुत व्यवहार के लिए इतनी मर्माहत हो गई कि वह वहाँ से बिना कुछ बोले चली आई ।
मगर उसके बाद ऐसा लगने लगा कि इभा ने मेरे साथ थोड़ा मेलजोल बढ़ाना शुरू किया । काम्यु का उपन्यास अभी भी उसके हाथ में था,  मगर मेरा शक था कि वह मेरा  अध्ययन करने में ज्यादा निमग्न थी । क्योंकि तीसरे रविवार उसने कुछ चॉकलेटें लाई थी दीपा के लिए । मगर दीपा नहीं आई थी । शाम हो गई , मगर बंगला नहीं खरीदा गया । उसने मुझे कहा, " आप क्यों नहीं खरीद लेते ? आपकी रुचि बहुत संभ्रांत है । आप इस घर की मर्यादा का ख्याल रखेंगे । दूसरे लोग एक महीने के अंदर अंदर कीमती मार्बल, काँच और सारे सामान ले जाएंगे और अंत में इसके सारे पत्थर भी । एक इतिहास बन जाएगी हमारी अनेक यादें।"
सोचकर बताऊंगा , कहकर मैं लौट आया था । उस दिन दीपा ने सीधे शब्दों में इंकार कर दिया कि उसे वह घर नहीं चाहिए । इभा के  दुर्व्यवहार ने  उसे कष्ट पहुंचाया था । वह उसे विषण्ण लगा था ।  सच में मानो किसी के अन्त्येष्टि कर्म की राख़ अभी भी पड़ी हुई हो, और इसीलिए उस बालू के ऊपर घास उग आई हो । पचास साल तो बहुत दूर , पाँच साल में वह जगह समुद्र निगल जाएगा । वही विशाल सौ साल पुराना यूकेलिप्टस का पेड़ भी उसे अचानक प्रेत की तरह लगने लगा था । और पूरी जगह मानो एक श्मशान-घाट !    
     बलरामगडी से एक लेखक आकर पहुँच गए थे, उसके एक दिन बाद, हमारे चाय पीने के समय । क्योंकि उनको कहीं से खबर मिली थी इसीलिए ।
वास्तव में हमें उस घर के बारे में जानने की बहुत कुछ उत्सुकता थी । उसने कहा, “ जब मैं छोटा था यानि केवल आठ या नौ साल का था, उस समय इस अंचल में मेरा आना-जाना था । पैदल पैदल बलरामगडी से चाँदीपुर चले जाते थे । कतारबद्ध झाऊँ जंगलों से गुजरते समय साँय-साँय की आवाज में बधिर हो जाते थे बाकी सारे शब्द ......
ऐसे ही एक दिन इभा के साथ उनकी दोस्ती हो गई । और उस घर में आना जाना शुरू हुआ । इभा कहती थी, वह घर उसकी माँ का पिरामिड है । वह मरने के बाद भी यहाँ पर रहेगी । सारे गहने और इत्र भी रहेंगे उसके साथ । माँ की मृत्यु के लिए ऐसा भला कोई कहता है ? फिर भी वे समझ गए यह प्रेम का घर । जिस प्रेम में सभी स्वाधीन हैं। तीन हजार साल पहले भी मिश्र में किसी ने प्रेम की कविता लिखी थी जिसमे प्रेमिका सुगंधित फूलों का बगीचा और प्रेमी प्रेम के राजहंस पक्षी की तरह प्रेम की मदिरा के लिए व्याकुल होकर दौड़कर आता है । उस अट्टालिका में केवल तीन लोग रहने वाले होने के बावजूद जीवंत जगह थी वह !
एक दिन उसकी माँ का एक दोस्त आकर पहुँच गया उस प्रेम की उपत्यिका में । जहां मनुष्य पेड़ों और सारे पेड़ नदी बन गए थे । उस समय इभा के माँ की उम्र कितनी होगी ? ज्यादा से ज्यादा तीस साल ! प्यार के विषय में बहुत कुछ नहीं जानने पर भी उनकी हंसी से बगीचे में फूल खिल जाते थे, पेड़ बड़े हो जाते हैं ऐसी एक धारणा थी उनकी । जीवन की मूलभूत आवश्यकता है रोटी और चावल यह बात उसने अपने माता-पिता से सीखी थी , मगर इभा के घर आने के बाद समझ में आया कि प्यार उससे भी ज्यादा जरूरी है । स्वयं राजा-महाराजा भी रोटी और प्रेम के लिए उसी तरह अधीर होते हैं । उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि पहले रोटी की चिंता समाप्त हो , फिर प्रेम की बारी और फिर वह इभा को लेकर  अपना घर-संसार बसाएगी । इतना याद था कि इभा की माँ खूबसूरत थी, और उनका पुरुष मित्र एक आर्किटेक्ट । जिसने इस कोठी की प्लानिंग की और अंत में उस ऊपर वाली कोठरी की । वह इसलिए बहुत बार आते थे । बस, इतनी ही यादें ।
पचीस साल की उम्र में जब वह बलरामगड़ी लौटे उस समय उसकी दुनिया सहित प्रेम का कोई स्थान नहीं था । उसने सोचा तक न था कि इभा वहाँ होगी । इभा को मिलते समय देखा कि वह अंगूर लता की तरह कमजोर ,मगर यौवन में भरपूर दिख रही थी । ऐसे स्थान में पुरुष मित्र का मिलना अवश्य दुरूह था । मगर वे लोग ऐसे होंगे , ऐसी उसकी धारणा न थी । इभा ने कहा मेरे भाग्य में इस पिरामिड की जगह को छोड़ कुछ भी नहीं था ? मेरा उद्धार कीजिए।
घर मानो पत्थर में बदल गया हो । आग भड़क रही थी और सारे पेड़ पानी के अंदर , जो किसी भी समय बांध तोड़कर नदी में बन जाएगा । घर में उसके पिताजी विवर्ण और मरणासन्न । उन्हें मीठा कड़वा लग रहा था और कान से सुनाई नहीं दे रहा था । मगर दृष्टि इभा पर हर समय । वहाँ प्रेम किस तरह बेस्वाद लगने लगा !
इभा ने कहा , मेरी माँ को मरे हुए दो साल हो गए । और वास्तव में यह घर पिरामिड में बदल गया । पिताजी माँ को क्लिओप्राटा कहकर बुलाते थे , क्योंकि वह क्लिओप्राटा की तरह कृष्णांगी और कोकिला थी । मगर माँ का यह प्रेमी उसके दुख का कारण बन गया । वह भी माँ से प्यार करता था । उसके सौंदर्य का पुजारी था । उसकी बहुत इज्जत करता था , उसका घर बनाने के लिए इतने दूर से आकर महीने महीने तक यहाँ रहता था । मगर कभी कोई असत आचरण का तो सवाल ही नहीं उठता । फिर भी पिताजी के मन में संदेह की कोई सीमा नहीं थी ।  एक दिन उस पुरुष मित्र को बरसात के दुपहर में भेज दिया उस संगम स्थल पर , माँ को बुलाने के लिए ।उसने कहा था वह तब  उस दिन और नहीं लौटे समुद्र के किनारे से । उस बरसात में धरती,आकाश , जल एकाकार हो जाता है , कोई दिशा तक नहीं दिखती है । वह और लौटकर नहीं आए । सुबह-सुबह उनका मृत शरीर मिला । यह लाश देखकर माँ पूरी तरह बदल गई थी । वह खुद एक लाश बन गई थी । पिताजी का अधिक सुहाग उसे खराब लगने लगा । वह उसी ऊपरी मंजिल में बैठती थी, गाना गाती थी और समुद्र की तरफ देखती थी । एक दिन वह भी मर गई ,और पिताजी ने उसे गाड़ दिया उस हरे मार्बल के चबूतरे में । यह घर मेरी माँ का पिरामिड यह बातें चरितार्थ हो गया । ....
“.......इभा मर जाएगी नहीं तो यहाँ पागल बन जाएगी, इस विषय में मेरा संदेह नहीं था । उस दिन रात की ट्रेन से ले गए उसे मुंबई । मेरा घर है वहाँ । मेरी पत्नी इभा के बारे में जानती थी और हमने उसका दो महीने इलाज कराने के बाद लंदन भेज दिया था अपने बड़े मामा के पास । वहाँ इभा के शादी करके अपना घर-संसार बसा लिया । प्रेम के प्रति उसका झुकाव न होना स्वाभाविक था । अब आप लोग समझ सकते होंगे मैं यहाँ क्यों आया हूँ अब ? घर सरकार ले लेने से बेहतर रहेगा और ज्यादा ठीक रहेगा उसे ऐसे ही परित्यक्त अवस्था में छोड़ देने से । मैं नहीं चाहता कि आप एक कब्रिस्तान को खरीदे । भले ही प्रेम की कब्रिस्तान, मगर है तो एक कब्र स्थान ही ! कम कीमत होने पर भी मालिकाना आपका । हो न हो , इभा आपको भद्र व्यक्ति मानती है , इसलिए उसके सेंटीमेंट का ख्याल रखेंगे और इस घर के रहस्य को हमेशा गोपनीय रखेंगे । मगर मेरा प्रस्ताव है कि आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे।”          

















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